________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दाँतेके परमार।
दाँतेके परमार । इस समय आबूके परमारोंके वंशमें ( आबू पर्वतके नीचे, अम्बा भवानीके पास ) दाँताके राजा हैं । परन्तु ये अपना इतिहास बड़े ही विचित्र ढंगसे बताते हैं । ये अपनेको आबूके परमारोंके वंशज मानते हैं। पर साथ ही यह भी कहते हैं कि हम मालवेके परमार राजा उदयादित्यके पुत्र जगदेवके वंशज हैं। प्रबन्धचिंतामाणके गुजराती अनुवादमें लिखे हुए मालवेके परमारोंके इतिहासको इन्होंने अपना इतिहास मान रक्खा है । पर साथ ही वे यह नहीं मानते कि मुञ्जके छोटे भाई सिंधुराजके पुत्र भोजके पीछे क्रमशः ये राजे हुएः-उदयकरण (उदयादित्य), देवकरण, खेमकरण, सन्ताण, समरराज और शालिवाहन । इनको उन्होंने छोड़ दिया है । इसी शालिवाहनने अपने नामसे श०सं० चलाया था। इस प्रकारकी अनेक निर्मूल कल्पित बातें इन्होंने अपने इतिहासमें भर ली हैं। ऐसा मालूम होता है कि जब इन्हें अपना प्राचीन इतिहास ठीक ठीक न मिला तब इधर उधरसे जो कुछ अण्ड बण्ड मिला उसे ही इन्होंने अपना इतिहास मान लिया । कान्हड़देवके पहलेका जितना इतिहास हिन्दू-राजस्थान नामक गुजरातीपुस्तकमें दिया गया है उतना प्रायः सभी कल्पित है। जो थोड़ासा इतिहास प्रबन्धचिन्तामणिसे भी दिया गया है उससे दाँतावालोंका कुछ भी सम्बन्ध नहीं । परन्तु इनके लिखे कान्हड़देवके पीछेके इतिहासमें कुछ कुछ सत्यता मालूम होती है। समयके हिसाबसे भी वह ठीक मिलता है । यह कान्हड़देव आबूके राजा धारावर्षका पौत्र
और सोमसिंहका पुत्र था । इसका दूसरा नाम कृष्णराज था। यह विक्रम संवत् १३०० के बाद तक विद्यमान था । दाँतावाले अपनेको कान्हड़देवके पुत्र कल्याणदेवका वंशज मानते हैं । अतः यह कल्याणदेव कान्हड़देवका छोटा पुत्र और आबूके राजा प्रतापसिंहका छोटा भाई होना चाहिए।
For Private and Personal Use Only