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परमार-चंश ।
७-धन्धुक । महिपालका पुत्र और उत्तराधिकारी था। यह बड़ा पराक्रमी राजा था । इसकी रानीका नाम अमृतदेवी था । अमृतदेवीसे पूर्णपाल नामका पुत्र और लाहिनी नामक कन्या हुई । कन्याका विवाह द्विजातियोंके वंशज चचके पुत्र विग्रहराजसे हुआ । विग्रहराजके दादाका नाम दुर्लभराज
और परदादाका सङ्गमराज था । लाहिनी विधवा हो जाने पर अपने भाई पूर्णपालके यहाँ वसिष्ठपुर ( वसन्तगढ़) चली आई । वि०सं० १०९९ में उसने वहाँके सूर्यमन्दिर और सरस्वती-बावड़ीका जीर्णोद्धार कराया । इसीसे बावड़ीका नाम लाणबावड़ी हुआ।
गुजरातके चौलुक्यराजा भीमदेवके साथ विरोध हो जानेपर धन्धुक आबूसे भागकर धाराके राजा भोज प्रथमकी शरणमें गया । भोज उस समय चित्तौरके किलेमें था । आबूपर पोरवाल जातिके विमलशाह नामक महाजनको भीमने अपना दण्डनायक नियत किया, उसने धन्धुकको चित्तौरसे बुलवा भेजा और भीमदेवसे उसका मेल करवा दिया । वि० सं० १०८८ में इसी विमलशाहने देलवाड़े आदिनाथका प्रसिद्ध मन्दिर बनवाया । मन्दिर बहुत ही सुन्दर है; वह भारतके प्राचीन शिल्पका अच्छा नमूना है। उसके बनवाने में करोड़ों रुपये लगे होंगे। वि० सं० १११७ के भीनमालके शिलालेखमें धन्धुकके पुत्रका नाम कृष्णराज लिखा है । अतः अनुमान है कि इसके दो पुत्र थे-पूर्णपाल और कृष्णराज।
८-पूर्णपाल । ___ यह धन्धुकका ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसके तीन शिलालेख मिले हैं। पहला विक्रम संवत् १०९९ ( ईसवी सन् १०४२) का वसन्तगढ़में, दूसरा इसी संवत्का सिरोही-राज्यके एक स्थानमें और
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