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परमार-वंश।
५-धरणीवराह । यह कृष्णराजका पुत्र था । उसके पीछे यही गद्दी पर बैठा । प्रोफेसर कीलहानने इसका नाम छोड़ दिया है और अद्भुत-कृष्णराजके पुत्रका नाम महिपाल लिख दिया है । पर उनको इस जगह कुछ सन्देह हुआ था। क्योंकि वहीं पर उन्होंने कोष्ठकमें इस तरह लिखा है:
"(Or, if a name should have been lost at the comme ncement of line 4, his son's son. )" अर्थात्-शायद यहाँ पर कृष्णराजके पुत्रके नामके अक्षर खण्डित हो गये हैं।
इसको गुजरातके सोलङ्गी मूलराजने हरा कर भगा दिया था। उस समय राष्ट्रकूट धवलने इसकी मदद की थी । इस बातका पता विक्रम संवत् १०५३ ( ईसवी सन् ९९६) के राष्ट्रकूट धवलके लेखसे लगता है:
"यं भूलादुदमूलयद्गुरुबलः श्रीमलराजो नृपो दर्पान्धो धरणीवराहनृपति यद्वद्विपः पादपम् । आयातं भुवि कांदिशीकमभिको यस्तं शरण्यो दधौ
दंष्ट्रायामिव रूढमूढमहिमा कोलो महीमण्डलम् ॥ १२ ॥ सम्भवतः इसी समयसे आबूके परमार गुजरातवालोंके सामन्त बने। मूलराजने विक्रम संवत् १०१७ से १०५२ (ईसवी सन् ९६१ से ९९६), तक राज्य किया था। अतएव यह घटना इस समयके बीचकी होगी।।
शिलालेखोंमें धरणीवराहका नाम साफ़ साफ़ नहीं मिलता। पर किराके लेखके आठवें श्लोकके पूर्वार्ध और वसन्तगढ़के पाँचवें श्लोकके उत्तराधसे उसके अस्तित्वका ठीक अनुमान किया जा सकता है । उक्त पदोंको हम क्रमशः नीचे उद्धृत करते हैं:प्रथम- सिन्धुराजधराधारधरणीधरधामवान्
... ... ... ... ॥८॥
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