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भारतके प्राचीन राजवंश
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३ परमार वंश |
आबूके परमार ।
परमार अपनी उत्पत्ति आबू पहाड़ पर मानते हैं । पहले समय में आबू और उसके आसपास दूर दूर तकके देश उनके अधीन थे । वर्तमान सिरोही, पालनपुर, मारवाड़ और दाँता राज्योंका बहुत अंश उनके राज्य में था । उनकी राजधानीका नाम चन्द्रावती था । यह एक समृद्धिशालिनी नगरी थी ।
विक्रम संवत्की ग्यारहवीं शताब्दि के पूर्वार्धमें नाडोल में चौहानोंका और अणहिलवाड़े में चौलुक्योंका राज्य स्थापित हुआ । उस समय से परमारोंका राज्य उक्त वंशों के राजाओंने दबाना प्रारम्भ किया । विक्रमसंवत् १३६८ के निकट चौहान राव लुम्भाने उनके सारे राज्यको छीन कर आबूके परमार राज्यकी समाप्ति कर दी ।
आबूके परमारों के लेखों और ताम्रपत्रोंमें उनके मूल - पुरुषका नाम धौमराज या धूमराज लिखा मिलता है । पाटनारायणके मन्दिरवाले विक्रम संवत् १३४४ के शिलालेखमें लिखा है:--
अनीतधेन्वे परनिर्जयेन मुनिः स्वगोत्रं परमारजातिम् ।
तस्मै ददावुद्धतभूरिभाग्यं तं धौमराजं च चकार नाम्ना ॥ ४ ॥
तथा - विक्रम संवत् १२८७ में खोदी गई वस्तुपाल - तेजपाल के मन्दिर - की प्रशस्ति में लिखा है:
श्रीघूमराजः प्रथमं बभूव भूवासवस्तत्र नरेन्द्रवंशे ।
परन्तु इस राजा के समयका कुछ भी पता नहीं चलता ।
विक्रम संवत् १२१८ ( ईसवी सन १९६१ ) के किराडूके लेख में इनकी वंशावली सिन्धुराजसे प्रारम्भ की गई है । परन्तु दूसरे लेखों में
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