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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषरोगाधिकारः] पञ्चमो भागः (चि. ५. प्र.) ६०३ - --- - - योगः योग) (५०) विषरोगाधिकारः कषाय-प्रकरणम् अमन-प्रकरणम् ७२७८ श्वेतपुनर्नवामूल ८०८३ संज्ञाप्रबोधनरसः सर्पविष १ वर्ष तक सादि से रक्षा ८०८५ सर्पविषहराञ्जनम् , रहती है नस्य-प्रकरणम् चूर्ण-प्रकरणम् ७५१७ शिरीपपुष्पनस्यम् मण्डूक विष ७३०४ शिरीषादियोगः सर्पविष ८११७ सिन्दुवारादिन० मूषक विष । ७८७३ सैन्धवादि योगः स्थावर जंगम विष (सरल रस-प्रकरणम् ७५७५ शर्करादिलेहः उग्र कृत्रिम विष घृत-प्रकरणम् ७३७८ शिखरीवृतम् समस्त विषविकार, विषम ७६१४ शिलादिपानकम् तोब मूषक विष ८१२५ संजीवनीवटी सर्पदष्ट मृत्प्रायः रोगीको । ज्वर भी जीवन दान देती है। ७९६१ सूर्योदय , मकड़ीका विष ८२४३ सुरसादियोगः घोर मूषक विषको अवश्य पासवारिष्ट-प्रकरणम् नष्ट करता है। ७४३९ शिरीषारिष्टः समस्त विषविकार ८२५० सूचिकाभरणरसः मूर्छा नाशक ८३७० स्वर्ण योगः विषादि लेप-प्रकरणम् ७४७० शिरीषादिलेपः विष नाशक सरल योग। मिश्र-प्रकरणम् ७४७२ , , मूषक विषनाशक सरल ७७१८ शिरीषपुष्पादियोगः सर्पविष योग। बर्रका दंश ७४८६ स्वान विषहरो ,, श्वान विष , , ८७६३ क्षारागदः इसका लेप करके बाजे ८०६६ सोमवल्कलादि बजानेसे वायु विष रहित लेपः दन्तविष, नखविष होती है। - - . For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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