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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वातव्याधि
८१९८ सर्वेश्वर रसः सुप्त वात | ८५९६ हरगौरी रसः वातव्याधि ८१९९ , , स्पर्श वात ८२३३ सुखभैरव रसः वात व्याधि
मिश्र-प्रकरणम् ८३१० स्पर्श वातन्न रसः स्पर्श वात
७७०८ शंकरस्वेदः अंगोंकी वातज पीड़ा ८३११ स्पर्शवातारिरसः स्पर्शवात, शोथ, वातरक्त ८३१५ स्वच्छन्द नायक
। ७७२७ शुण्ठ्यादिपायसः कटि शूल और गृध्रसीको समस्त वातव्याधि
अवश्य नष्ट करता है।
(४८) विद्रधि कषाय--प्रकरणम्
चूर्ण-प्रकरणम्
८४७२ हरीतक्यादि चू० उग्र अन्तर्विद्रधिको ७२२४ शिमूलादि
अवश्य शीघ्र ही नष्ट योगः अन्तर्विदधि
करता है। (सरल ७२२५ शिग्रवादि कपायः ॥
योग) ७२६४ शोभाञ्जनादि कन्कः ,
लेप-प्रकरणम् ७२८० श्वेतवर्षाभ्वादि क्वाथः ,, । ७४६६ शिवादि लेपः वातज विधि ।
८५६५ हरीतक्यादि , विधि, कञ्ची पक्की प्रन्थि ७८१३ सौभाजनक क० विद्रधिको शीघ्र नष्ट ८७३४ क्षीरकाकोल्यादि
करता है। सरल यो० __ लेपः पैतिक विधि ।
(४९) विरेचनाधिकारः चूर्ण-प्रकरणम्
रस-प्रकरणम्
८१८२ सर्वांग सुन्दर रसः रेचक, ज्वर, आमवात ८४७८ हरीतक्यादि योगः मुख विरेचक
श्वास नाशक
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