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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकर [अतिसार अवलेह-प्रकरणम् । ८२४२ सुधासार रसः अन्य किसी औषध से ७९२८ समङ्गाद्यवलेहः रक्तातिसार आराम न होने वाले अति सारको भी नष्ट करता घृत-प्रकरणम् है । आम, आमरक्त, ७७५३ षडङ्गघृतम् भयंकर त्रिदोषज अतिसा- । आनाह, हिक्का, अरुचि, रको शीघ्र नष्ट करता है आदिको २-३ मात्रामें ७९६० सुनिषण्णकचा नष्ट करता है। ड्रेरी घृतम् त्रिदोषज अतिसार, र- ८३१६ स्वच्छन्द भैरव क्तस्राव, प्रवाहिका, पि- रसः समस्त घोर अतिसार, च्छातिसार, गुदभ्रंश, आम, अग्निमांद्य । शोथ, शूल, अन्नग्रह ८६३२ हिंगुलेश्वर रसः अतिसार, प्रवाहिका, प्र८५३७ हीवेरादिघृतम् अतिसार, प्रवाहिका, पि हणी, अग्निमांद्य च्छातिसार, गुदभ्रंश, शूल . ८६७७ हंसपोटली रसः अतिसार, कास, हिक्का, ८७२१ क्षीरिद्रुमाचं निर्बलता, ग्रहणी घृतम् रक्तातिसार मिश्र-प्रकरणम् रस-प्रकरणम् ७७१३ शालिपर्यादिपेया कफपित्तातिसार ७५४३ शंखपोटलीरसः आमातिसार, प्रवाहिका, ७७१४ शालिपादि अतिसार, कास, श्वास, योगः अतिसार निर्बलता, अग्निमांध ७७२६ शुण्ठिपुटपाकः सोपद्रव जीर्णातिसार ७५६१ शंखोदर रसः समस्त प्रकारके अति- ७७२९ शुण्ट्यादि - सारों में उत्तम । पुटपाकः आमातिसार, (अग्निदीपक) ७६२३ शीघ्रप्रभावरसः अतिसार, वायु, आध्मान, ७७३० , ,, शूल नाशक (दीपन) मल यागके पश्चात् भी ! ७७३४ श्योनाकादियोगः पश्वातिसार हाजत बनी रहना । ८७७२ क्षीर योगः पुराना अतिसार For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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