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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतमकरणम् ] पञ्चमो भागः ४१ - - इसके सेवनसे अम्लपित्त, शूल, हृद्रोग, वमन काकड़ासिंगी, पीपल और अतीस समान और आमवातका नाश होता है। भाग ले कर चूर्ण बनाकर शहद में मिला लें । ( मात्रा-६ माशे । अनुपान-दूध । ) इसे चटानेसे बालकोंके ज्वर, कास, और शुण्ठीखण्डः (२) वमनका नाश होता है। केवल अतीसका चूर्ण शहदमें मिलाकर चटा(व. से, ; वृ. नि. र. । आमवाता. ; वृ. यो. नेसे भी बच्चोंके ज्वर, कास और वमनका नाश त.। त. ९३.) हो जाता है। प्र. सं. ३४६६ नागरायोवलेहः देखिये । (७३५५) शृङ्ग्यादिलेहः (२) शुण्ठीखण्डः (३) (वृ. नि. र. । बाला.) रस प्रकरणमें देखिये. एका शृङ्गी निहन्त्याशु मूलकस्य फलान्विता। (७३५४) शृङ्ग्यादिलेहः (१) . घृतेन मधुना लीढा कासं बालस्य दुस्तरम् ।। ( ग. नि. । बालरो. ; वृ. मा. ; च. द.) काकड़ासिंगी और मूलीके फल (सांगरी) के शृङ्गी सकृष्णातिविषां विचूर्ण्य चूर्णको घी और शहदमें मिलाकर सेवन करानेसे लेहं विदध्यान्मधुना शिशूनाम् । बालकोंकी दुस्तर कास नष्ट हो जाती है । कासज्वरच्छर्दिभिरर्दितानां श्रीसिद्धमोदकः समाक्षिकां चातिविषामथैकाम् ॥ ( भै. र. । रसायना.) १ समुस्तातिविषामिति पाठान्तरम् मिश्र प्रकरणमें देखिये। इति शकाराघवलेहपकरणम् अथ शकारादिघृतप्रकरणम् (७३५६) शव्यायं घृतम् चतुर्गुणं जलं चात्र दत्त्वा मृद्वग्निना पचेत् । (ग. नि. । घृता. १) ग्रहण्यर्थी हितं कासहिकोर पार्श्वशूलनुत् ॥ शठिर्वचाऽभया कुष्ठं पिप्पली विल्वशुण्ठिका। वातान सान्य श्वासान् सन्धिगतांश्चान्यान् इन्याद्वातकफापलांशं सैन्धवं चव्यं तेजोवत्यथ पुष्करम् ॥ __ मयान् ॥ सौवर्चलं तामलकी भूतीकं चालकसम्मितम् ।। कल्क-कचूर, बच, हरे, कठ, पीपल, हिवर्धकर्षकोपेत घृतपस्थ विपाचयेत् ॥ ] बेलकी छाल, और सोंठ ५. ५ तोले तथा सेंधा For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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