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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[शकारादि
लमपाक:
शालमपाकः
पायसं सहविष्यानं तत्कर्षेण च मिश्रितम् । रस प्रकरणमें देखिये.
भक्षयेदेकविंशाहं गृध्रसीनाशनं परम् ।। (७३५०) शालूरपांचवलेहः
६। सेर शीशमकी छालको कूट कर ६४ सेर ( भा. प्र. म. खं. २ । सन्निपाता.)
पानीमें पकावें और ८ सेर शेष रहने पर छान लें, शालूरपर्णीमालूरमूलामयमधुप्लुता।
और उसे पुनः पकाकर गाढ़ा कर लें। शनकपुष्पीसहिता सेव्या वाचां विशुद्धये ॥ इसमेंसे ११-१॥ तोला अवलेह नित्य प्रति
ब्राह्मी, बेलकी जड़, शंखपुष्पी और कूठ समान । खीर या घृतयुक्त भातमें मिला कर खानेसे २० भाग ले कर चूर्ण करें और शहदमें मिला कर | दिनमें गृध्रसी नष्ट हो जाती है । चटनी बना लें।
(७३५३) शुण्ठीखण्डः (१) इसे चटानेसे सन्निपातके रोगीकी वाणि शुद्ध
(भै. र. । अम्लपित्ता.) हो जाती है।
शुण्ठीचूर्णस्य कुडवं खण्डपस्थं समावपेत् । (७३५१) शिखिपिच्छलेहः दत्त्वा द्विकुडवं सर्पिः क्षीरप्रस्थद्वये पचेत् ।।
(वृ. नि. र. । हिक्का.) लेह्येऽवतारिते दद्यात् धात्रीधान्यकमुम्तकम् । शिखिपिच्छभस्मकृष्णाचूर्ण
अजाजी पिप्पली वांशी त्रिजातं कारवी शिवा।। मधुमिश्रितं मुहुर्तीढम् ।।
त्रिशाणं मरिच नागं षण्माषन्तु पृथक पृथक् । हिकां हरति प्रबलां श्वासं
| पलत्रयश्च मधुनः शीतीभूते प्रदापयेत् ॥ चैवातिदुस्तरां छर्दिम् ।।
ततो मात्रां प्रयुञ्जीत भम्लपित्तनिवृत्तये। मोरके पंखकी भस्म और पीपलके चूर्णको
शूलहृद्रोगवमनैरामवातैश्च पीडितः ॥ शहदमें मिला कर बार बार चटानेसे प्रबल हिक्का,
२० तोले शुण्ठिचूर्णको १ सेर धीमे भूनें श्वास और अतिदुस्तर छर्दिका नाश होता है। और फिर उसमें ४ सेर दूध तथा १ सेर खांड (मात्रा-आधा माशा।)
मिला कर मन्दाग्निपर पकावें । जब अवलेह तैयार शिलाजतुलेहः
हो जाय तो उसे अग्निसे नीचे उतारकर उसमें रस प्रकरणमें देखिये.
आमला, धनिया, नागरमोथा, जीरा, पीपल, वंश
लोचन, दालचीनी, इलायची, तेजपात, काला जीरा (७३५२) शिंशिपात्वगादियोगः
। और हर्र का चूर्ण ११।-११ माशे तथा काली (व. से. । वातव्या.) | मिर्च और नागकेसरका चूर्ण ७॥--७॥ माशे मिला शिशिपात्वक तुलां क्षुण्णां जलद्रोणद्वये पवेत्। दें। तदनन्तर जब वह टण्डा हो जाय तो उसमें अष्टभागावशिष्टश्च पूतं लेहश्च कारयेत् ।। । १५ तोले शहद मिला दें।
मिच
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