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रसपकरणम्
पचमो भागः
५४३
पाण्डुरोगश्च गुल्मश्च शोथोदरगुदामयान् । मुख बन्द करदें और ३ दिन तक पकाते रहें। यक्ष्माणं पञ्चकासांश्च मन्दामित्वमरोचकम् ॥ तत्पश्चात् उसे सुखाकर पीसलें। प्पीहानं श्वासमानाइमामवातं सुदारुणम् । (४) शुद्ध पारदको क्रमश: जयन्ती पत्र, गुटी क्षुधावती सेयं विख्याता रोगनाशिनी ॥ अरण्ड, अदरक और मकोयके रसमें १-१ दिन
(१) शुद्ध धान्याभ्रकको साठी चावलोंकी खरल करके धोकर सुखालें। कांजीमें पीसकर १ दिन उसीमें भिगोये रक्खें और । (५) आमलासार गंधकके चावलके समान फिर उसे सुखाकर जमीकन्द, मानकन्द, अस्थि- बारीक टुकड़े करके लोह पात्रमें रक्खें और उसमें संहार, खण्डकर्ण, (एक प्रकारका आल), कांटे वाली भंगरेका रस भरदें एवं उसे तेज धूपमें सुखा दें। चौलाई, शालिञ्च शाक, काला मरसा, सफेद पुनर्नवा, । इसी प्रकार भंगरेके रसकी ३ भावना दें। तत्पश्चात् कटेली, भंगरा, लक्ष्मणा और काला भंगरा; इनमेंसे | उसे मंदाग्निपर पिघलालें और भंगरेके रससे भरे प्रत्येकके रसमें घोट घोटकर बार बार पुट दें कि
हुवे पात्रके मुख पर कपड़ा बांधकर उस पर वह जिससे अभ्रकको निश्चन्द्र भस्म हो जाय । । | पिघली हुई गंधक फुरतीसे डाल दें कि जिससे वह
(२) सोनामक्खीका शालिञ्च शाकके रसमें | छनकर पात्रमें गिरजाय। तत्पश्चात् उस गंधकको खरल करके तपाकर त्रिफलाके क्वाथमें बुझावें। इसी | निकालकर सुखा लें। प्रकार अनेक बार बुझावें और फिर उस क्वाथमें
उपरोक्त विधिसे बनाई हुई अभ्रक भस्म १० कान्त लोह या किसी अन्य प्रकारक उत्तम लाहका तो., लोह भस्म ५ तो. और मण्डूर भस्म २॥ तपा तपाकर बार बार बुझावें । जब लोह बारीक |
| तो. लेकर सबको एकत्र खरल करके एक हाण्डीमें हो जाय तो उसे सफेद लोध, हास्तकण पलाश, डालें और उसमें मण्डूकपर्णी ( ब्राह्मी), लाल पुनत्रिफला, विधारा, मानकन्द, आस्थसहार, अदरक, | नवा और तालमलीका रस (समान भाग मिश्रित) दशमूल, मुंडी, और तालमूली (मूसली); इनके |
इतना डालें कि सब ओषधियां रसमें डूब जाएं तदक्वाथ या रसमें पृथक् पृथक् खरल करके गजपुटमें
नन्तर हांडीको चूल्हे पर चढ़ाकर मन्दाग्नि पर पकावें कि जिससे वारितर भस्म हो जाय।
पकावें। जब सब रस सूख जाय तो उसमें शता(३) सफेद पुनर्नवा, सफेद फूलकी खरैटी, | वर, भंगरा, काला भंगरा और म(साका रस डालकर गिलोय, चिरायता, कांटेवाली चौलाई, और पुनर्नवा; - पुनः पकावें । जब यह रस भी सूख जाय तो इनके पंचांग लेकर सबको पीसकर लुगदीसी बनावें | त्रिफला और नागरमोथेका क्वाथ डालकर पकावें
और उसे पुराने मण्डूरके ऊपर नीचे रखकर सम्पुट- और इसके सूख जाने पर आग देनी बन्द करदें तथा में बन्द करके पुटमें पकावें। तदनन्तर उस मंडूरको | हाण्डीके स्वांगशीतल होने पर औषधको निकालकर हाण्डोमें डालकर उसमें गोमूत्र भरकर उसका | पीसलें ।
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