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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[सकारादि
लेकर सबको एकत्र मिलाकर घृत मात्र शेष रहने (८७२९) क्षीरिद्रमाचं घृतम् तक पकावें और छान लें।
(च. द.। अतिसारा. ४) यह घृत पित्तज कास को नष्ट करता है।
भीरिद्रुमाभीरुरसे विपक्वं
तज्जैश्च कल्कैः पयसा च सर्पिः । ( मात्रा-१ से २ तोले तक । )
सितोपलाधै मधुपादयुक्तं (८७२८) क्षीरिघृतम्
रक्तातिसारं शमयत्युदीर्णम् ॥ ( यो. र. ; व. से. । कासा.)
जीर्णेऽमृतोपमं क्षीरमतीसारे विशेषतः ।
छागं तु भेषजैः सिद्धं देयं वा वारिसाधितम् ॥ क्षीरिक्षाङ्गुरक्वाथे पचेत्क्षीरसमं घृतम् ।।
क्षीरी वृक्षों (पीपल, पिलखन, बड़, गूलर पाययेत्पित्तकासनं मधुना वाऽवलेहयेत् ॥ और पारस पीपल) की कांपलेका क्वाथ २ सेर,
क्षीरी वृक्षों (पीपल, पिलखन, बड़, गूलर, शतावरका रस २ सेर, दूध १ सेर और घी १ सेर पारस पीपल) की कांपल समान भाग मिलित २॥ | लेकर सबको एकत्र मिलावें तथा उसमें क्षीरी वृक्षां सेर लेकर कूटकर २० सेर पानीमें पकावें और ५ की कॉपलों और शतावरका १० तोले कल्क मिला सेर रहने पर छान लें । तत्पश्चात् १ सेर घी में कर पकावें । जब पानी जल जाय तो घी को यह क्वाथ और १। सेर दूध मिलाकर पकावें । जब
छान लें। घृत मात्र शेष रह जाय तो छान लें।
. इसमें इस से आधी खांड और चौथाई शहद
मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसारका नाश होता है। इसे पीने या शहद मिलाकर चाटने से पित्तज ।
| पुराने अतिसारमें उचित औषधियों से या कासका नाश होता है।
| केवल पानी से सिद्ध किया हुवा बकरीका दूध (मात्रा-१ से २ तोले तक । ) अमृतके समान गुण करता है।
इति क्षकारादिघृतप्रकरणम्
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