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रसप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
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पथ्याऽर्जुनविडङ्गोत्यं क्वार्थ चानु मधुप्लुतम् । (८६८०) हंसमण्डूरम् शुक्रमेहादिकान्दन्ति रसोय हंसभैरवः ॥ (र. र. स. । उ. अ. १९; र. चं. ; यो. र.
र. रा. सु. ; वृ. नि. र. र. का. धे. । पाण्डवा.) ३ भाग बंगको पिघला कर (कई कई बार)
मण्डूरं मर्दयेच्लक्ष्णं गोमूत्रेऽष्टगुणे पचेत् । सूरीके दूध और सीपकी भस्मके पानीमें बुझावें ।
त्र्यूषणं त्रिफला मुस्ता विडङ्गं चन्यचित्रको ।। फिर उसे पिघलाकर उसमें ३ भाग शुद्ध पारा
दावी ग्रन्थी देवदारु तुल्यं तुल्यं विचूर्णयेत् । और १ भाग शुद्ध हिंगुल मिलाकर १ दिन नक
घृतं मण्डूरतुल्यं च पाकान्ते मिश्रयेत्ततः ।। छिकनीके रसमें खरल करें और फिर उसमें आधा
| भक्षयेत्कर्षमात्रं च जीर्णान्ते तक्रभोजनम् । आधा भाग चौंटली (गुंजा ), शुद्ध हरताल, रस.
पाण्डुरोगं हलीमं च उरुस्तम्भं च कामलाम् ।। सिन्दूर, शुद्ध मंसिल और सुहागा; इनका चूर्ण |
अशांसि हन्ति नो चित्रं हंसमण्डरकाहवम् ।। मिलाकर पलाशकी छालके रस और आकके दूध
शुद्ध मण्डूरके बारीक चूर्णको आठ गुने की सात सात भावना दें । तत्पश्चात् उसमें
गोमूत्रमें पकावें और जब वह गाढ़ा हो जाय तो आधा आधा भाग पलाश (ढाक) का, वट (वड़) | उसमें निम्न लिखित ओषधियां मिलादेंका और चिंचा (इमली)का क्षार मिलाकर शराव- सोंठ, मिर्च, पीपल, हर, बहेड़ा, आमला, सम्पुट में बन्द करें और उसे ३२ पहर (बालुका
नागरमोथा, बायबिडंग, चव, चीता, दारुहल्दी, यन्त्रमें ) तीब्राग्नि पर पकायें। जब स्वांग शीतल
पीपलामूल और देवदार; इनमेंसे प्रत्येकका चूर्ण हो जाय तो रसको निकालकर सुरक्षित रक्खें।
तथा पी मण्डूरके बराबर । मात्रा-२ रत्ती।
मात्रा-११ तोला । (ब्यवहा. मा. २-३
माशे ।) अनुपान-हर, अर्जुनकी छाल और बाय
___औषध पचने पर तक भात खाना चाहिये । बिडंग इनका मधुमिश्रित क्वाथ ।
इसके सेवनसे पाण्डुरोग, हलीमक, उरुस्तम्भ, इसके सेवनसे शुक्रमेहादिका नाश होता है। कामला और अर्शका नाश होता है। १ यो. र. में दारुहल्दी का अभाव है तथा पीपल और सोंठ दो बार आई है एवं चीका अभाव है।
इति हकारादिरसमकरणम्
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