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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [हकारादि वल्लयुग्ममितमानतस्त्वयं पक्वमूषागतं याम पचेयः क्षिपन् द्रवम् । श्वासकासविनिवृत्तिदायकः।। केतकीकुष्ठनिर्गुण्डीशिग्रुग्रन्थाग्निचव्यजम् ॥ पिप्पलीभिरनुपाययेत्तथा वन्ध्याहिनेभकर्युत्थं व्याघ्रीलुङ्गबलोद्भवम् । क्वाथमत्र सुरसाटरूषजम् ॥ | अश्वगन्धाभवं वारान् विशद्वित्रीषु सागरान् ॥ पारदभस्म १ भाग, शुद्ध गंधक २ भाग, षट्सप्तवसुदिग्वित्रियुगं भुवनतः क्रमात् । स्वर्णभस्म १ भाग, चांदा भस्म १ भाग, अभ्रकसत्व कुमार्याः पुटयेत् प्रौढो रसो हेमाद्रिसजनकः ॥ भस्म १ भाग, लोहभस्म १ भाग और ताम्र भस्म भुक्तो माषो निहन्त्याशु सर्वार्थोरोचकग्रहान् । १ भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर खरल करें। मन्दाग्न्युन्मादमेदांसि गण्डमालार्बुदापचीः॥ और फिर उसे ( धृत लिप्त ) लोहपात्र में डालकर | गलगण्डममेहादीन् मुष्कलिङ्गाक्षिकर्णजान् । मन्दाग्नि पर पिघलावें तथा गायके गोबर पर बिछे क्षुद्ररोगांश्च विविधान् गरुडः पनगानिव ।। हुवे केलेके पत्ते पर फुरती से फैलाकर उसपर दूसरा कृष्ण खर्पर ३।तोले, शुद्ध गंधकका चूर्ण १० कदली पत्र ढककर उसे गोबरसे दबा दें । एवं स्वांग तोले नागभस्म ५तोले और अभ्रक भस्म ५तोले लेकर शीतल होने पर पर्पटीको निकाल लें। एकत्र खरल करके खुली हुई मजबूत मूषामें रखकर तदनन्तर उस पर्पटीको १-१ दिन बासा, उस मूषाको बालकायन्त्रमें रखकर १ पहर पकावें और तुलसी, जयन्ती, गोरखमुंडी, त्रिफला, अदरक, भांगरा, . फिर उसमें निम्न लिखित ओषधियोंके रस की भावना चौलाई और घृतकुमारी; इनके स्वरसमें खरल करें दें अर्थात् एक ओषधिका रस डालकर जलावें जब तथा ३ दिन बछनागके क्वाथ में खरल करके ज़रा वह सूख जाय तो पुनः उसीका डालें । इसी प्रकार देर लोहपात्रमें मन्दाग्नि पर पकावें। तत्पश्चात् सुखा, जब एक ओषधिकी नियत भावनाएं पूरी हो जायं कर खरल करके रखें। तो दूसरी ओषधिके रसकी भावना दें। भावना द्रव्य मात्रा-४-६ रत्ती । (व्यवहारिक मात्रा- और भावनाओंकी संख्या इस प्रकार है२ रत्ती ।) ___ केतकी की २० , कूठकी २, संभालकी ३, इसे अदरकके रसमें मिलाकर सेवन करनेसे संहजनेकी ५, पीपलामूलको ७, चीतेकी ६, चव्यकी कास श्वासका नाश होता है। ७, बांझककोड़ेकी ८, जटामांसीकी ८, हस्तीकर्णी ____ अनुपान-तुलसी और बासेके क्वाथ में (कासाल) की २, कटेलीकी ३, बिजौ रेकी ४, पीपरका चूर्ण मिलाकर पिलावें । खरैटीकी १४, असगन्धकी १४, तथा घृत(८६७४) हेमादिरसः कुमारी की १४ । (रसे. चि. म. । अ. ९ ; र. का. थे. । क्षुद्ररोगा.) सम्पूर्ण ओषधियोंकी भावना पूर्ण होने पर वै कृष्णरसकञ्यक्षं पिष्ट्वा गन्धं पलद्वयम् । स्वांगशीतल होनेके बाद रसको निकालकर पीस लें। पलं नागाभ्रयोः सर्व सञ्चूर्ण्य सिकताघटे ॥ मात्रा-१ माशा। (व्य. मा. १-२ रत्ती।) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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