SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 503
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ इकारादि - पाषाणभेद ) ६ भाग तथा बच, कूठ, हल्दी, जवा- | पूरयेदाकरसं द्विगुणं तत्र बुद्धिमान् । खार, चीतामूल, पाठा, कलियारी, सेठ, कालीमिर्च, पुष्पाणि माषमागाणि परितः स्थापयेत्ततः ॥ पीपल, सेंधा नमक, बहेड़ा और शुद्र बछनाग; इनका | शरावसम्पुटं दचा चुल्ल्यां मध्याग्निना परेत् । चूर्ण १-१ भाग लेकर प्रथम पारे गंधककी कज्जली घटिका त्रयपर्यन्तं तत उत्तार्य पेषयेत् ॥ बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियों का चूर्ण | ताम्बूले गुञ्जमात्रं तु देयं पुष्टिकरं मतम् । मिलाकर भंगरेके रसकी १ भावना देकर सुखाकर पाण्डौ क्षये च शूले च सर्वरोगेषु योजयेत् ।। सुरक्षित रक्खें। ____एक मिट्टीके शरावमें ३ रत्ती हरतालका चूर्ण यह रस हिचकी, स्वरभंग और कासको नष्ट | बिछाकर उसके बीचमें श तोला हिंगुलकी डली रख करता है। दें और फिर उस पर २॥ तोले अदरकका रस डाल ( मात्रा-२ रत्ती ।) दें तथा उसके चारों ओर १ माषा लौंग रख दें। (८६२१) हिकान्तक रसः तदनन्तर उसे दूसरे शरावसे ढककर सन्धिको भली (सुवर्णभस्मादि योगः) भांति बन्द कर दें और उस सम्पुटपर कपरमिट्टी (र. चं. ; र. रा. सु. । हिक्का.) करके सुखा लें। हेयमुक्तार्ककान्तानां भस्म वल्लमितं वरम् ।। __अब इस सम्पुटको चूल्हे पर रखकर उसके बीजपूररसक्षौद्रसौवर्चलसमन्वितम् ॥ नीचे ३ घड़ी तक मध्यमाग्नि जलावें और फिर इन्ति हिकाशतं सत्यमेकमात्रादयवतः।। स्वांग शीतल होने पर हिंगुलकी भस्मको निकालकर का कथा पश्चहिकानां हरणे सूत उच्यते ॥ पीस लें। स्वर्ण भस्म, मोती भस्म, ताम्र भस्म, और इसमेंसे १-१ रत्ती पान में रखकर खिलाने कान्तलोह भस्म १-१ भाग लेकर सबको एकत्र से शरीर पुष्ट तथा क्षय, पाण्डु और शूलादिका खरल करके रखें। नाश होता है। इसमेंसे २-३ रत्ती रस बिजौ रे नीबू के रस, शहद और संचल (काले नमक) के साथ मिलाकर (८६२३) हिङ्गुलशोधनम् (१) सेवन करने से सैकड़ों प्रकारकी हिक्का ( हिचकी) (र. प्र. सु. । अ. ६) केवल एकही मात्रासे नष्ट हो जाती है फिर पांच कूष्माण्डखण्डमध्ये तु स्वेदितो लकुचाम्बुना। प्रकारकी हिचकी की तो बात ही क्या है ? । | सकृत्सञ्जायते शुद्धः सर्वकार्येषु योजयेत् ॥ (८६२२) हिङ्गुलभस्मविधिः हिंगुलकी डलीको पेठे ( भूरे कुम्हड़े )के (यो. र.) टुक डेके भीतर रखकर (दोलायन्त्र विधिसे १ दिन) वरसमा तालपिष्टं शरावे स्थापयेत्ततः।। लकुच (बढल) के रसमें स्वेदित करनेसे वह शुद्ध तस्मिन्कर्षसमं देयं शकलं दरदस्य च ।। हो जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy