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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] पश्चमो भागः ४४५ - (८४७४) हरीतक्यादिचूर्णम् (१६) पिप्पली मधुसमन्विताऽभया ( व. से. । अजीर्णा. ; ग. नि. । परि. चूर्णा.. रक्तपित्तमतिदुजेयं जयेत् ॥ ३; अजीर्णा. ५) ' हरं को बासे (अडूसे) के रसकी सात भावना हरीतकी धान्यतुषोदसिद्धा । दें। हर भावनाके पश्चात् सुखाते रहना चाहिये । सपिप्पलीसैन्धवहिायुक्ता। । तदनन्तर उसमें उसके बराबर पीपलका चूर्ण मिला सोद्गारधूमं भृशमप्यजीर्ण : कर रखें। विजित्य सद्यो जनयेत्क्षुधां च ॥ ___ इसे शहद के साथ सेवन करनेसे दुर्जय रक्त हरको कांजी में पकाकर चूर्ण कर लें फिर पित्त भी नष्ट हो जाता है। उसमें पीपल, सेंधा नमक और हींगका चूर्ण (प्रत्येक (मात्रा--२-३ माशा ।) उसके बराबर) मिला लें। (८४७७) हरीतक्यादियोगः (२) इसके सेवनसे प्रवृद्ध अजीर्ण और धूमोद्गार (ग. नि. । उदरा. ३२) का नाश होकर भूख लगती है। हरीतकी पुष्करतैलपक्यां (मात्रा-८ रत्ती) ___ सञ्चूयं गोमूत्ररसैः पिबेतै। (८४७५) हरीतक्ष्यादिचूर्णम् (१७) सपिप्पलोसैन्धवमिश्रितां च (हा. सं. । स्था. ३ अ. ४) जलोदराक्रान्तजनः सुखाय ॥ हरीतकी पिप्पलीदीप्यकं सठी ___ हर को पोखरमूलके तेलमें पकाकर चूर्ण करें सनागरं तुम्बरु हिज सैन्धवम् । और फिर उसमें पीपल और सेंधा नमकका चूर्ण सौवर्चलेनापि युतं तु चूर्ण । (प्रत्येक उसके बराबर ) मिला लें। त्वजीर्णकं हन्ति सदैव सेवितम् ॥ इसे गोमूत्रके साथ सेवन करने से जलोदरका हर, पीपल, अजवायन, कचर, सोंठ, तुम्बुरु. नाश होता है। हींग, सेंधानमक और संचल ( काला नमक) (मात्रा-६ माशे । ) समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । (८४७८) हरीतक्यादियोगः (३) इसे सेवन करनेसे अजीर्णका नाश होता है। (वा. भ. । उ. अ. ३९ रसायना.) (मात्रा-१। माशा । ) हरीतकीमामलकं सैन्धवं नागरं वचाम् । • (८४७६) हरीतक्यादियोगः (१) । हरिद्रां पिप्पली वेल्लं गुडं चोष्णाम्बुना पिबेत् ।। ( हा. सं. । स्था. ३ अ. १०) स्निग्धः स्विन्नो नरः पूर्व तेन साधु विरिच्यते॥ आटरूषकरसेन सप्तधा हरें, आमला, सेंधा, सोंठ, बच, हल्दी, पीपल, भाविता च पुनरेव शोषिता । बायबिडंग और गुड़ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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