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पूर्णमकरणम् ]
पञ्चमो भागः (७३२३) शूकरशिम्बीमूलयोगः . इसे शहदमें मिला कर चटानेसे बालकों के ( भा. प्र. म. सं. २ । स्त्री रोगा.) ज्वर, खांसी और वमनका नाश होता है। शूकरशिम्बीमूलं मध्य
( मात्रा-४ रत्ती।) वा दषिफलस्य सपयस्कम् ।
केवल अतीसका चूर्ण चटानेसे भी बालकोंके पीत्वाथो भवलिङ्गीबीज
ज्वर, खांसी और वमनका नाश हो जाता है । __ कन्यां न मूते स्त्री ॥
(७३२६) शृङ्गयादिचूर्णम् (२) यदि किसी स्त्रीके केवल कन्या ही कन्याएं (यो. र.; भै. र. ; वै. र. ; वृ. मा. ; ग. नि. ; होती हो तो उसे कौंचकी जडका चूर्ण या कैथके र. र. । हिक्का. ; वृ. यो. त.। त. ८० ; यो. गूदेका चूर्ण दूधके साथ पिलाना चाहिये अथवा चि. म. । अ. २ ; व. से. । ) शिवलिंगीके बीज सेवन कराने चाहिये ।
शृङ्गीकटुत्रयफलत्रयकण्टकारी(७३२४) शृङ्गवेरादियोगः
___ भार्गीसपुष्करजटालवणानि पञ्च ।
चूर्ण पिवेदशिशिरेण जलेन हिकां (यो. र. ; वृ. नि. र. । अश्मय.)
वासोवातकसनारुचिपीनसेषु ।। शावरयवक्षारपथ्याकालीयकान्वितम् ।
काकड़ासिंगी, सेठ, काली मिर्च, पीपल, हर्र, माज दधि भिनत्युग्रामश्मरीमाशु पातयेत् ॥ बहेड़ा, आमला, कटेली, भरंगी, पोखरमूल और ___अदरक (सोंठ) जवाखार, हर और अगर पांचो नमक समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।। समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे हिक्का, इसे बकरीके दहीमें मिलाकर सेवन करनेसे स्वास, उर्ध्व वात, कास, अरुचि और पीनसका कठिन पथरी भी टूटकर शीघ्र ही निकल जाती है। नाश होता है। (मात्रा-२-३ माशे।)
(मात्रा-२-३ माशे ।) (७३२५) शृग्यादिचूर्णम् (१) (७३२७) शृङ्गयादिचूर्णम् (३) ( शा. सं. । खं. २ अ. ६ ; वै. र. । कासा.)
( र. र. । श्वासा.) शृङ्गी प्रतिविषा कृष्णा चूर्णिता मधुना लिहेत।
शृङ्गीमहौषधकणाघनपुष्कराणां शिशोः कासज्वरच्छदिशान्त्यै वा केवला विषा ॥
चूर्ण शठीमरिचयोश्च सिताविमिश्रम् ।
क्वाथेन पीतममृताविषपञ्चमूल्पाः काकडासिंगी, अतीस और पीपल समान भाग श्वास व्यहेण विनिहन्ति हि घोरले कर चूर्ण बनावें।
रूपम् ॥
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