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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[शकारादि (७३१८) शुण्ठयादियोगः सेठ, ब्राह्मी, हींग, अनारदाना और अम्लवेत ( भा. प्र. म. खं. २ । अजीर्णा. ) समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । गुडेन शुण्ठीमथ चोपकुल्यां
इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे श्वास पथ्यां तृतीयामथ दाडिमं वा। और हृद्रोगका नाश होता है। आमेष्वजीर्णषु गुदामयेषु
(मात्रा-१ माषा ।) वर्गों विबन्धेषु च नित्यमद्यात् ॥ (७३२१) शुण्ठयाचं चूर्णम् (३)
आमाजीर्ण, अर्श और मलावरोधमें नित्य प्रति (वै. जी. । विलास २; वृ. नि. र.। अतिसारा.) सेठ, पीपल और हर के समान भाग-मिश्रित कल्याणि काश्चनलसा ललिताङ्गयष्टे (२ माशे) चूर्णको अथवा अनार दानेके चूर्णको । ताम्बूलशालिवदने ललने शृणुष्व । गुड़में मिला कर खाना चाहिये।
शुण्ठीमदाकुसुममोचरसाजमोदा(७३१९) शुण्ठयाद्यं चूर्णम् (१) स्तक्रान्विताः पशमयन्त्यतिसारमुग्रम् ॥ ( ग. नि. । परि. चूर्णा. ३)
सांठ, धायके फूल, मोचरस और अजमोद शुण्ठी ससौवर्चलचित्रकाभयां
समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । ___ सरामठां दाडिमसैन्धवान्विताम् ।
___ इसे तक (मटे) के साथ सेवन करनेसे उग्र
अतिसार भी नष्ट हो जाता है । खादन्ति ये मन्दहुताशना
(मात्रा-३ माशे।) भुवि भवन्ति ते वाडवतुल्यवयः॥ । सेठ, संचल (काला नमक), चीतामूल, हरे,
(७३२२) शुण्ठयाचं चूर्णम् (४) हींग, अनारदाना, और सेंधानमक समान भाग ले (वै. म. र. । पटल ३) कर चूर्ण बनावें।
शुण्ठीकणासिताधात्रीरेणुः क्षौद्रेण मिश्रितः। इसे सेवन करनेसे अग्निमांद्यका नाश हो कर हिकां हन्ति समालीढः, सक्षौद्रं पिच्छभस्म वा ॥ जठराग्नि अत्यन्त तीव्र हो जाती है।
सेठ, पीपल, मिश्री, आमला और रेणुका (मात्रा-१॥-२ माशा।
समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
इसे शहदके साथ चाटनेसे हिचकी नष्ट हो अनुपान-उष्ण जल ।)
जाती है। (७३२०) शुण्ठ्याद्यं चूर्णम् (२)
(मात्रा-३ माशा।) (ग. नि. । हृद्रोगा. २७)
मोरपंखकी भस्म शहदमें मिलाकर चाटनेसे शुण्ठीसुवर्चलाहिङ्गुदाडिमं साम्लवेतसम् । भी हिचकीका नाश होता है । चूर्णमुष्णाम्बुना पेयं श्वासहृद्रोगमुक्तये ॥ (मात्रा-१ माशा ।)
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