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कषायमा
पञ्चमो भागः
४३७
वातशूलशमनाय शस्यते । (८४३७) हृद्यो दशको महाकषायः पाचनं निगदितं च वर्तते ॥
(च. सं. । सू. स्था. १ अ. ४ ) हींग, पोखरमूल, कचूर और काला नमक आम्राम्रातकनिकुचकरमर्दवृक्षाम्लाम्लवे(संचल) समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । तसकुवलबदरदाडिममातुलुङ्गानीति दशेमानि
यह क्वाथ शूल और विशेषतः वातज शलको हृयानि भवन्ति । नष्ट करता है तथा पाचक है ।
____ आम, अम्बाड़ा, लकुच, करोंदा, तिन्तडीक ( काला नमक क्वाथ तैयार होने पर मिलाना (इमलो), अम्लवेत, कुवल (बड़ा बेर), झाडोका बेर, चाहिये।)
अनार और बिजौरा-ये दश चीजें हृदयके लिये (८४३५) हिङ्ग्वादिकाथः (२) हितकारी हैं। (हा. सं. । स्था. ३ अ. ७)
(८४३८) ह्रीबेरादिकषायः (१) हिङ्गुनागरसठीसुवर्चलं
(भै. र. । स्त्रीरोगा. ; च. द. । स्त्रीरोगा. ६२; . दारुपौष्करघनं पुनर्नवा ।
र. र. । स्त्री, वृ. यो. त. । त. १४० ; व. क्वाथपानमिति शूलिनां
से. । स्त्री. ; धन्व. । सूतिका. ; यो. र. | स्त्री.) हितं पाचनं जठरगुल्मिनामपि ॥ हीवेरारलुरक्तचन्दनबलाहींग, सांठ, कचूर, काला नमक (संचल),
धन्याकवत्सादनीदेवदारु, पोखरमूल, नागरमोथा और पुनर्नवाकी जड़
मुस्तीशीर यवासपर्पटविषासमान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
__ क्याथं पिबेद् गर्भिणी। यह क्याथ शूल, उदररोग और गुल्मको नष्ट
नानावर्णरुजातिसारकगदे करता है तथा पाचक है।
रक्तस्रतौ वा ज्वरे ( काला नमक क्वाथ तैयार होने पर मिलाना | योगोऽयं मुनिभिः पुरा चाहिये ।)
निगदितः मूत्यामयेष्त्तमः ॥ (८४३६) हिज्जलपत्रस्वरसः
सुगन्धबाला. अरलुकी छाल, लाल चन्द, (ग. नि. । अतिसारा. २) खरे टी, धनिया, गिलोय, नागरमोथा, खस, जवासा, दलोत्थः स्वरसः पीतो हिज्जलस्य समाक्षिकः। पित्तपापड़ा और अतीस समान भाग ले कर जयत्याममतीसारं क्वाथो वा कुटजोद्भवः ।। क्वाथ बनावें ।
हिज्जल वृक्षके पत्तोंके स्वरसमें शहद मिला यह क्वाथ गर्भिणी और प्रसूताके पंडायुक्त कर पीने या कुडेको छालका (या इन्द्रजौका) क्याथ अनेकरंगों वाले अतिसार, रक्तस्राव और ज्दरको नष्ट पीनेसे आमातिसारका नाश होता है । - करता है।
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