________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसपकरणम् ]
पञ्चमो भागः
४१३
स्वर्णमाक्षिकके चूर्णको क्रमशः गोमूत्र, तक ! (८३४१) स्वर्णमाक्षिकसत्वपातनम् (१) और कुलथीके क्वाथमें घोट घोट कर सुखा लें (र. प्र. सु.। अ. ५) फिर उसमें (चतुर्थीश) शुद्ध गंधक मिलाकर नीबूके लोहपात्रे सुसंदिग्धं लोहदण्डेन घर्षितम् । रस में खरल करें और टिकिया बना कर सुखा लें
यदा रक्तं धातुनिभं जायते निम्बुकद्रवैः ।। तथा शरावसम्पुट में बन्द करके वराहपुट में
घर्षयेत्रिगुणं मूतं मुक्त्वा सङ्घर्षणं कुरु । फूंक दें । इसी प्रकार ५ पुट देनेसे भस्म हो
दिनैकं घर्ष येत्वा तु दृद्धवस्त्रेण गालयेत् ॥ जाती है । *
वस्त्रस्था पिष्टिका लग्ना वधः पतति पारदः । *अशुद्ध स्वर्णमाक्षिककेदोष अनेनैव प्रकारेण द्वित्रिवारेण गालयेत् ॥ मन्दानलत्वं बलहानिमुना
तत्पिष्टी गोलकं ग्राह्यं यन्त्रे डमरुके न्यसेत् । विष्टम्भितां नेत्रगदान सकुष्ठान् ।
प्रहरद्वयमानं चेदग्निं प्रज्वालयेदधः ॥ मालां विधत्तेऽपि च गण्डपूर्वी
इन्द्रगोपसमं सत्वमधःस्थं ग्राहयेत्सुधीः । शुध्यादिहीनं खलु माक्षिकं तु ॥
अनेनैव विधानेन ताप्यसत्वं समाहरेत् ॥ ( आ. वे. प्र.)
टङ्कणेन समायुक्तं द्रावितं मूषया यदा । अशुद्ध माक्षिकं कुर्यादान्ध्यं कुष्ठं क्षयं कृमीन् ।
तदा ताम्रमभं सत्वं जायते नात्र संशयः ॥ शोधनीयं प्रयत्नेन तस्मात्कनकमाक्षिकम् ।।
देहलोहकरं सम्यग्देवीशास्त्रेण भाषितम् ॥ स्वर्णवर्ण गुरु स्निग्धमीपनीलच्छविच्छटम् ।
स्वर्णमाक्षिकके चूर्णको लोहपात्रमें डालकर कषे कनकवद् घृष्टं तद्वरं हेममाक्षिकम् ।। आगार रक्खें और लोहदण्डसे रगड़ते रहें । जब माक्षिकं तिक्तमधुरं मेहार्शः क्षयकुचनुत् ।।
वह लाल हो जाय तो नीबूका रस डाल कर धोटें कफपित्तहरं शीत योगवाहि रसायनम् ||
| और उसमें स्वर्णमाक्षिकसे ३ गुना पारद मिला (वृ. यो. त.)
कर १ दिन घोट कर मज़बूत कपड़ेसे छान लें ।
छाननेसे कपड़ेमें पिष्टी रह जायगी और नीचे पारद अशुद्ध स्वर्ण माक्षिक सेवन करनेसे अग्निमांद्य,
| निकलेगा। इसी प्रकार २-३ बार छान लें। बलहास, विष्टम्भ (कब्ज), नेत्ररोग, कुष्ट, गण्ड
तदनन्तर उस पिष्टीके गोलेको डमरुयन्त्रमें रख माला, अन्धता, क्षय और कृमि रोग उत्पन्न
कर दो पहर अग्नि पर पकावें । तत्पश्चात् यन्त्रके होते हैं।
सांगशील होने पर उसे खोलकर नीचे के पात्रजो स्वर्णमाक्षिक सोनेके समान रंगवाली भारी, स्निग्ध, और कुछ नोलापन लिये हो तथा र्ण माक्षिक तिक्त, मधुर, प्रमेहनाशक, जो कसौटी पर घिसनेसे स्वर्ण के समान दिख ई है। अर्शहर तथा क्षय, कुष्ट, कफ और पित्तको नष्ट वह उत्तम होती है।
करने वाली; शीतल एवं योगदादी रसायन है।
For Private And Personal Use Only