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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पश्चमो भागः ३६३ - ---- - - (८२३८) सुधानिधिरसः (३) भस्म सबसे दो गुनी ( १० भाग ) ले कर सबको ( भै. र. ; रसे. सा. सं. ; र. रा. मु. ; धन्व. । एकत्र मिलाकर गोमूत्र, भंगरेके रस, पुनर्नवामूलके मूर्छा.) रस, काले भंगरेके रस, संभालके रस और मण्डूक पीके रसकी पृथक् पृथक् १४-१४ भावना दे कर कणामधुयुतं सूतं मूर्छायामनुशीलयेत् ।। | २-२ रत्तीकी गोलियां बना लें। शीतसेकावगाहादि सर्व वा शीतलं भजेत् ॥ सुधानिधिरसो नाम मदमूर्छाविनाशनः ।। अनुपान-तक या भंगरेका रस । पारदभस्म ( या रससिन्दूर ) को पीपलके इसके सेवन कालमें तकके साथ भात खाना चूर्ण और शहदके साथ सेवन करनेसे मूर्छाका | | और प्यासमें पानीके स्थानमें तक पीना चाहिये । नाश होता है। लवणसे परहेज़ करना चाहिये । मूर्छा और मद रोगमें शरीर पर शीतल जल | इसके सेवन से कामला, ज्वर, शोथ, प्रहणीकी धार डालना, शीतल जलमें घुसकर स्नान करना विकार और पाण्डु का नाश होता तथा अग्नि आदि शीतल उपचार करने चाहिये । दीत होती है। ( पारदभस्म १ रत्ती, पीपलका चूर्ण १ माशा, | (८२४०) सुधानिधिरसः (५) शहद १ तोला।) (यो. र. ; र. का. धे. ; रसे. सा. सं. ; र. रा. (८२३९) सुधानिधिरसः (४) मु. ; धन्व. , र. चं. ; वृ. नि. र. । रक्त(भै. र. । शोथा. ) पित्ता. ; र. चि. म. | स्त. ११ ; रसे. धान्यकं बालकं मुस्तं विश्व सिन्धुं समांशकम् । चि. म. । अ. ९) मण्डूरं द्विगुणं दत्त्वा भावयेत्तु चतुर्दश ॥ गन्धं मूतं माक्षिकं लोहचूर्ण गोमूत्र केशराजश्च शोथनी भृङ्गराजकः। निर्गुण्डी भेकपर्णी च रसैरेषां विभाव्य च ॥ ____ सर्व घृष्टं त्रैफलेनोदकेन । लौहे पात्रे गोपयःस्थं च कृत्वा x द्विगुमश्च प्रयुञ्जीत तक्रेण सह बुद्धिमान् । रात्रौ दद्याद्रक्तपित्तप्रशान्त्यै ॥ केशराजरसैर्वापि भोजनं लवणं विना ।।। तक्रेण भोजयेदन्नं पाने तक्रश्च दापयेत् । x“ लौहे पात्रे गोमयैः पाचयित्वा " कामलाज्वरशोथनो वहिसन्दीपनः परः॥ इति पाठभेदः । ग्रहणोपाण्डुरोगनः सर्वव्याधिविनाशनः ॥ (नोट-इस प्रयोगके उपादान प्र. सं.८२३६ धनिया, सुगन्धवाला, नागरमोथा, सांठ और के समान हैं परन्तु निर्माणविधि और सेवन विधिमें सेंधा नमक-इनका चूर्ण १-१ भाग एवं मण्डूर | बहुत अन्तर है इसीसे पृथक् लिखा गया है।) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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