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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः ३४९ (८२१०) सारणसुन्दररसः माषोऽस्य दुग्धभत्तानुपानेन स्वरभाजित् । (र. सं. क. । उल्ला. ४ ; र. का. धे. । उदरा.) अयं सारस्वतो नाम रसो जाड्यापहारकः ।। मृतं गन्धं समं शुद्धं सप्तधा भावयेत् क्रमात । समान भाग शुद्ध पारद और गन्धककी स्नुह्यक दुग्धैः श्रीखण्डद्वयश्यामाभयारसैः ॥ कजली बना कर उसे बच और शंखपुष्पीके रसमें समं नेपालजं चूर्ण देयमेकत्र मर्दयेत् । ३-३ दिन खरल करके सुखा लें और आतशी उष्णाम्बुना वल्लयुग्मं देयमष्टगुणे गुडे ॥ शीशी में डाल कर २४ पहर बालकायन्त्रमें मन्दाग्निमलाः पूर्वं जलं पश्चात्ततश्चामः शनैः शनैः। पर पकार्वे । तदनन्तर उसके स्वांगशीतल होने उदराच्च विनाऽन्त्राणि सर्व निर्याति किल्बिषम पर औषधको निकाल कर पीस लें। जाते विरेके संशुद्ध पथ्यं दध्योदनं हितम् ।। मात्रा-१ माशा ( व्यवहारिक मात्राजयेज्ज्वरादिकान् रोगान् रस: सारणसुन्दरः॥ १ रत्ती ।) शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक समान-भाग ले पथ्य-दूध भात । कर कज्जली बनावें और उसे स्नुही (थहर-सेंड) इसके सेवनसे स्वर भंग और जडताका नाश के दूध, आकके दूध, सफेद चन्दनके काथ, लाल होत चन्दनके काथ, हरके काथ और निसोतके क्वाथकी (८२१२) सारिवादिवटी सात भावना दें । तदनन्तर उसमें उसके बराबर (भै. र. । कर्णरो.) शुद्ध जमालगोटा मिला कर अच्छी तरह खरल सारिवां मधुकं कुष्ठं चातुर्जातं प्रियङ्गकम् । करें और ६-६ रत्तीकी गोलियां बना लें। नीलोत्पलं गुडूचीञ्च देवपुष्पं फलत्रिकम् ।। ( व्यवहारिक मात्रा-२ रत्तो।) । अभ्रं सर्वसमश्चाभ्रसमं लोह विभावयेत् । एक गोली आठ गुने गुड़में मिला कर उष्ण केशराजाम्युना पार्थकाथेन यवजाम्भसा ।। जलके साथ खानेसे विरेचन हो कर ज्वरादि रोग । काकमाचीरसेनापि गुञ्जामूलद्रवेण च । नष्ट हो जाते हैं। त्रिगुभापमिताः पश्चाद् विदध्याद् वटिका इससे पहिले तो मल निकलता है, फिर पानी | भिषक् ॥ और अन्त में आम निकल कर पेट साफ हो धारोष्णेनापि पयसा शतमूलीरसेन वा । एकैकां योजयेत् प्रातः श्रीखण्डसलिलेन वा॥ जाता है। निखिलान् कर्णजान् रोगान् प्रमेहानपि (८२११) सारस्वतरसा विंशतिम् । ( र. का. धे. । स्वरभेदा.) रक्तपित्तं क्षयं श्वासं क्लैव्यं जीर्णज्वरं तथा ॥ रसगन्धौ वचा शङ्कपुष्प्यास्त्रित्रिदिनं पुटे । अपस्मारमदाीसि हृद्रोगश्च मदात्ययम् । चतुर्विशतियामांस्तु वहिं दद्यान्मृदुं भिषक् ॥ सारिवादिवटी हन्यात् स्त्रीगदानखिलानपि ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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