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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः ३४८ जिमिकन्द - इनका चूर्ण १ - १ भाग ले कर सबको एकत्र मिला लें और इस मिश्रणसे चार चार गुना दही, गोमूत्र और गोदुग्ध एकत्र मिला कर उसमें यह चूर्ण डाल कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश शुष्क हो जाय तो पोस कर बारोक ले कर 1 इसे उचित मात्रानुसार उष्ण जलके साथ सेवन करना चाहिये और औषध पच जाने पर उड़दसे बने हुवे घृतयुक्त पथ्य पदार्थ खाने चाहियें । इसके सेवनसे नाभिशूल अवश्य नष्ट हो जाता है । साधारणतः समस्त शूलोंके लिये और विशेषतः परिणामशूल के लिये तो इससे श्रेष्ट अन्य औषध नहीं है । यह चूर्ण गुल्म, प्लीहा तथा कफवातज विधि और अटलको भी नष्ट करता है । ( मात्रा - १ || - २ माशे । ) (८२०९) सारकल्पः ( व. सं. : ग्रहण्य. ) आलिप्य तापी करवीरकाभ्यां वैश्वानरे प्रज्वलिते निधाय । तप्तं सुतं विनियोज्य तक्रे निर्वाप्य वरान्वहुशः सुलोहम् ॥ एभिः प्रकारैः सुमृताश्च लोहा चूर्णीकृताश्चापि पलानि चाष्टौ । सर्पिप्पलं तैलपले पलानि चत्वारि चादाय वरारसस्य ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तक्रस्य चाम्लस्य चतुष्पलानि व्योषाजमोदाचविकानलानां [ सकारादि कर्षञ्च कर्षे पृथगौषधानाम् । मूकं प्रदद्याद्दशपिप्पलीनाम् ॥ सिन्धुप्रभूतं सविङ्गचूर्ण तक्रेण हन्याद् ग्रहणीं समस्ताम् । अशसि शोथं परिणामस शुच दीप्तिं करोति वह्नेः ॥ For Private And Personal Use Only १ - १ भाग सोनामक्खी और मनसिलके चूर्णको एकत्र मिला कर ( पानी या नीबू के रस में घोट कर) बारीक लोह पत्रोंपर लेप करें और उन्हें अग्निमें तपा कर तक्रमें बुझा दें । इसी प्रकार बार बार उक्त चीज़ोंका लेप करके तपा तपा कर तक्रमें बुझानेसे लोहेकी भस्म हो जायगी; उसे खरल करके बारीक कर लें । यह लोह भस्म ४० तोले, घी १० तोले, तिलका तेल २० तोले, त्रिफलेका काथ ४० तोले तथा अम्ल तक ४० तोले और सोंठ, मिर्च, पीपल, अजमोद, चव तथा चीता ; इनका चूर्ण ११- १ | तोला एवं पीपलामूल, सेंधा नमक और बायबिडंगका चूर्ण १२॥ - १२ ॥ तोले ले कर सबको एकत्र मिला कर ( मन्दाग्नि पर पका कर, जलांश शुष्क होने पर) अच्छी तरह खरल करके रक्खें । इसे तक के साथ सेवन करनेसे समस्त ग्रहणी - विकारोंका तथा अर्श, शोथ और परिणामशूलका नाश होता और अग्नि दीप्त होती है ।
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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