SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ३२४ शूलं गुल्मं जठरजरुजां वातजान सर्वरोगान् । | मद्यं कफकृतगदं पीनसं च ज्वरार्तिम् ।। प्लीहं पाण्ड्रं क्षयकृतरुजः कुष्ठरोगानशेषान् । मूर्धारोगान रुचिनिचयं हन्ति रोगांस्तथाऽन्यान् भारत-भैषज्य रत्नाकरः ॥ शुद्ध पारद, कान्त लोह भस्म, शुद्ध गन्धक, अभ्रक भस्म, स्वर्ण माक्षिक भस्म, शुद्र हरताल, राजावर्त - भस्म, स्वर्ण-भस्म, मुलैठी और दुर्गपुष्पी समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधें मिला कर सबको भंगरे के रस में खरल करके (१ - १ रत्तीकी) गोलियां बना लें । यह रस शूल, गुल्म, जठरपीड़ा, समस्त वातज रोग, अग्निमांब, कफज रोग, पीनस, ज्वर, प्लीहा, पाण्डु, क्षय, कुष्ठ, शिरो रोग और अरुचिका नाश करता है । (८१७३) सर्वतोभद्रलौह : (१) (भै. र. । अम्लपि. ) लौहचूर्ण मृतं ताम्रमभ्रकञ्च पलं पलम् । शुद्धसूतस्य कषैकं गन्धकार्द्धपलं तथा ॥ माक्षिकस्य विशुद्धस्य कर्षे शुद्धशिलापरा । सार्द्धकर्ष विशुद्धःश्च शिलाजतु तथापरम् ॥ गुग्गुलोचापि कर्षैकं शाणमानं परस्य च । चूर्ण विभल्लातवह्निश्वेतार्कमूलजम् ॥ करिकर्णपलाशश्च तालमूली पुनर्णवा । घनामृता नागवला चक्रमर्दकमुण्डिरी ॥ भृङ्गकेशशतावर्यो वृद्धदारं फलत्रयम् । त्रिकटुवापि सर्वेषां प्रत्येकञ्च नयेद्भिषक् ॥ [सकारादि सर्वमेकत्र सम्मर्थ घृतेन मधुना सह । स्निग्धे भाण्डे विनिक्षिप्य ततः कुर्याद्विधानवित् ॥ द्विमुखादिक्रमेणैव लौहं सर्वरसायनम् । अम्लपित्तं जयेच्छीघ्रं सर्वोपद्रवसंयुतम् ॥ तद्वदर्शासि सर्वाणि सर्वमेव भगन्दरम् । पक्तिशूलञ्च शूलश्च तथामं कुक्षिसम्भवम् ॥ बावरचं तथा कुष्ठं पाण्डुरोगं हलीमकम् । आमनातं तथा शोषमग्निमान्धं सुदुस्तरम् ॥ कामलां वातगुल्मच पिडकागरगृध्रसी । कासश्वासारुचिरं दृष्यमेतद्विशेषतः ॥ सर्वव्यादिरं प्रोकं यथेष्टाहारसेविनः । यक्ष्माणं रक्तपित्तश्च वातरोगं विनाशयेत् ॥ संज्ञया सर्वतोभद्रलौहो रसवरः स्मृतः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोह - मस्म, ताम्र भस्म और अभ्रक भस्म ५-५ तोळे शुद्ध पारेद १| तोला, शुद्ध गन्धक २॥ तोले, स्वर्णमाक्षिक भस्म १ तोला, शुद्ध मनसिल १ तोला, शुद्ध शिलाजीत २२॥ माशे, शुद्ध गूगल १ तोला तथा बायबिडंग, शुद्ध मिलावा, चीतामूल, सफेद आकको जड़की छाल, हस्तिकर्ण पलाशकी छाल, तालमूली (मूसलो), पुनर्नवाकी जड़, नागरमोथा, गिलोय, नागवला (गंगेरन), पंवाड़के बीज, गोरखमुण्डी, मंगरा, सुगन्धवाला, शतावर, विधारा, हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च और पीपल; इनका चूर्ण ३॥ - ३ || माशे ले कर प्रथम पारे गन्धकको कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियांका चूर्ण मिला कर सबको भली भांति खरल करें और सबके एकजीव हो जाने पर थोड़ा थोड़ा शहद और For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy