________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
३१७
इसे अदरकके रसके साथ अथवा सेठि, मिर्च, कर्णस्रावरुजागृत्यहरः पाचनदीपनः । पीपल और मिश्रीके चूर्णके साथ खिलानेसे कष्ट- अशुद्धः स करोत्यङ्गभङ्गं तस्माद्विशोधयेत ॥ साध्य बातव्याधियां नष्ट हो जाती हैं। समुद्रफेनः सम्पिष्टौ निम्बुतोयेन शुध्यति ॥
इसकी नस्य देनेसे मूर्छा जाती रहती है। ससुद्रफेनको अब्धिफेन, अब्धिसार, अब्धिज मात्रा-२-३ रत्ती।
और समुद्रज भी कहते हैं। समीरपन्नगरसः (३)
समुद्रफेन आंखोंके लिये हितकारी, लेखन, (कृ. नि. र. । वातव्या.) शीतल, सारक (रेचक ), पाचन और दीपन प्र. सं. ६९८२ “वातगजाङ्कुशरसः (२)"
है । यह कर्णस्राव, कर्णपीड़ा और कर्णमलको नष्ट देखिये।
करता है । ___ इसमें उसकी अपेक्षा तुलसी अधिक है तथा __अशुद्ध समुद्रफेन अङ्ग भङ्ग करता है अतः भावना द्रव्योंमें संभालुके स्थानमें तुलसी है। उसे शुद्ध करके काममें लाना चाहिये ।
(८१५६) समीरशूले भहरिः समुद्रफेनको नीबूके रसमें घोटनेसे वह शुद्ध ( यो. र. ; र. का. धे. । शूला.)
हो जाता है। क्षार कपर्दो विषसैन्धवौ च
(८१५८) सम्मोहलौहम् __ व्योपं च सम्मर्थ भुजङ्गचल्ल्याः । (र. चं. । पाण्डु. ; रसे. सा. सं. ; र. रा. रसेन गुञ्जापमितः प्रदिष्टः
सु. । पाण्डु.) ___ समीरशूलेभहरिः प्रचण्डः ॥ त्रिकटु त्रिफला वह्निर्विडॉ लोहमभ्रकम् ।
जवाखार, कौड़ी भस्म, शुद्ध बछनाग, सेंधा एतानि समभागानि घृतेन वटिका कुरु ।। नमक, सांठ, मिर्च और पीपल; सबके समान भाग कामलां पाण्डुरोगं च हृद्रोगं शोथमेव च । चूर्णको एकत्र मिला कर पानके रसमें खरल करके |
| भगन्दरं कोष्ठक्रिमि मन्दानलमरोचकम् ।। १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें।
तान् सर्वान्नाशयेदाशु बलवर्णाग्निवर्द्धनः । इनके सेवनसे वातजशूल नष्ट होता है ।
सम्मोहलोह नामाऽयं पाण्डुरोगे च पूजितः ।।
सांठ, मिर्च, पीपल, हर', बहेड़ा, आमला, (८१५७) समुद्रफेनशोधनम्
चीतामूल और बायबिडंग; इनका चूर्ण तथा लोह( आ. वे. प्र. । अ. १० ; यो. र.) भस्म और अभ्रक-भस्म समान भाग ले कर सबको अब्धिफेनोऽब्धिसार: स्यादब्धिजश्च समुद्रजः। एकत्र मिला कर थोड़े घीके साथ खरल करें और समुद्रफेनश्चक्षुष्यो लेखनः शीतलः सरः॥ (१-१ माशेको ) गोलियां बना लें।
For Private And Personal Use Only