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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ३१० जमालगोटा ६ भाग, सुहागे की खील ५ भाग, धतूरेकें शुद्ध बीज ४ भाग और सेठ, मिर्च तथा पीपलका चूर्ण ३ - ३ भाग लेकर प्रथम पारे - गन्धक की कज्जली बनायें और फिर उसमें अन्य औष भारत- भैषज्य का चूर्ण मिलाकर सबको चीतामूलके कायमें खरल करके २-२ रत्तीकी गोलियां बना लें I इन्हें अदरक के रसके साथ देनेसे सन्निपात वर नष्ट होता है। (र. रा. सु. । सन्निपाता. ; सन्निपाता. ) (८१४१) सन्निपातविध्वंसकः र. र. र. का. घे. । X र. का. घे. में " बोल " की जगह कमीला और पाठा की जगह कचूर है । - रत्नाकरः [ सकारादि खार, सुहागा, बच, हींग, पाठा, काकड़सिंगी, पटोल, बांझककोड़ेकी जड़, तीन प्रकारका नीम ( कड़वा नीम, बकायन, मीठा नीम; इनकी छाल), सोंठ और कलिहारीकी जड़ समान भाग ले कर प्रथम पारे, गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर सबको १- १ दिन संभाल और जम्बीरीके रसमें खरल करके चने के समान गोलियां बना लें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्हें खिलानेसे उपद्रव युक्त अत्युग्र सन्निपात भी अवश्य नष्ट हो जाता है । A अनुपान - दशमूलका काथ या आककी जड़का काथ ! सूतं गन्धं समं शुद्धं तालकं माक्षिकं तथा । मृत ताम्राभ्रकं बोलं विषं धत्तूरबीजकम् ॥ क्षारत्रयं वच्चा हिङ्गु पाठा शृङ्गी पटोलकप । वन्ध्यानिम्बत्रयं शुण्ठी कन्दलाङ्गलीजं समम् ।। सिन्धुवारद्रवैर्म सर्व जम्बीर जैदेवैः । हिङ्गुलं गन्धकं ताम्रं मरिचं पिप्पली विषम् । शुण्ठीकनकवीजं च श्लक्ष्णचूर्णानि कारयेत् ॥ दिनैकं वटिका कार्या चणकाभां च भक्षयेत् ॥ विजयापत्रतोयेन त्रिदिनं भावयेत्सुधीः । अत्युग्रं सन्निपातन्तु सर्वोपद्रवसंयुतम् । निहन्यादनुपानेन दशमूलार्कजेन वा ।। कषायेण न सन्देह पथ्यं दध्योदनं हितम् । रसो विध्वंसको नाम सन्निपातस्य निश्चितम् || शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध हरताल, स्वर्ण माक्षिक भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म, बोल, शुद्ध वछनाग, धतूरे के शुद्ध बीज, जवाखार, सज्जी द्विगुञ्ज पर्णखण्डेन अर्कक्वाथं पिबेदनु || निहन्ति सन्निपातोत्थान् गदान् घोरान् सुदारुणान् । वातिकं पैत्तिकं चैव श्लैष्मिकं च विशेषतः ॥ पथ्य - दही भात | (८१४२) सन्निपातसू रसः ( र. रा. सु.; भै. र. । सन्निपाता. ) शुद्ध हिंगुल, शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म, काली मिर्चका चूर्ण, पीपलका चूर्ण, शुद्ध बंछनाग, सोंठका १ पाठान्तर के अनुसार बच और काकड़ासिंगीके स्थानमें अर्कपत्र तथा निम्बत्रयके स्थान में भृङ्गराजका रस है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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