________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अञ्जनप्रकरणम् ]
पश्चमो भागः
(८१०५) सैन्धवाद्यञ्जनम् (६) (८१०८) सौवीराञ्जनम् (१) ( ग. नि. । ज्वरा. १ ; वृ. नि. र. ।
(वा. भ. । उ. अ. १३.) विषमज्वरा.)
सौवीराजनतुत्यकशोधात्रीफलस्फटिकर्पूरम् । सैन्धवं पिप्पलीनां च तन्दुलाः समनःशिलाः । पञ्चांशं पश्चांशं व्यंशपथैकांशमजनं तिमिरघ्नम्।। नेत्राअनं तैलपिष्टं शस्यते विषमज्वरे ॥
सौवीरांजन (सुरमा) ५ भाग, शुद्र नीलासेंधा नमक, पीपलके चावल और शुद्ध मन- |
थोथा ५ भाग, काकड़ासिंगो ३ भाग तथा आमला, सिलके समान भाग मिश्रित चूर्णको तेलमें पीसकर फिटकरी और कपूर १-१ भाग। सबके बारीक आंखों में लगानेसे विषम ज्वर नष्ट होता है। चूर्णको एकत्र मिला कर खरल करें। (८१०६) सैन्धवाद्यञ्जनम् (७) । । इसे आंखमें लगानेसे तिमिर रोग नष्ट
( यो. र. । नेत्ररोगा.) होता है। आईकस्वरसैपृष्टं सिन्धुकासीससम्मितम् । (८१०९) सौवीराञ्जनम् (२) छायाशुष्कां वटी कुर्यात्पूयाख्ये हितमञ्जनम् ।।
(व. से. । नेत्ररोगा. ) __ सेंधा नमक और कसीसके समान भाग- सौवीरमजनं तुत्थं ताप्यं धात्री मनःशिला । मिश्रित चूर्णको अद्रकके स्वरसमें खरलकरके गोलियां चतुर्हरेणुमधुकं लोई शुकन्नमञ्जनम् ॥ बनावें और उन्हें छाया में सुखा लें।
सौवीरांजन (सुरमा), शुद्ध नीलाथोथा, इसे ( पानीमें घिस कर ) आंखमें लगानेसे स्वर्ण माक्षिक भस्म, आमला, शुद्ध मनसिल, मुलैठी पूयालस नामक नेत्ररोग नष्ट होता है। और लोहभस्म; इनका चूर्ण समान भाग ले कर (८१०७) सौगताञ्जनम्
सबको एकत्र मिला कर खरल करें ।
___ इसे आंखमें लगानेसे नेत्रशुक्र (फूला) नष्ट (ग. नि. । नेत्ररोगा. ३ ; यो. त.। त. ७१)
| होता है। निशाद्वयाभयाकृष्णामांसीकुष्ठं विचूर्णितम् । सर्वनेत्रामयान् हन्यादेतत्सौगतमञ्जनम् ॥
(८११०) सौवीराजनयोगः हल्दी, दारुहल्दी, हरं, पीपल, जटामांसी (ग. नि. । नेत्ररोगा. ३ ) और कूठ; इनका चूर्ण समान भाग ले कर सबको भृङ्गोद्भवस्वरसभावितमाजदुग्धे एकत्र मिला कर खरल करें।
मूत्रे गवां पयसि त्रिफलाकषाये । इसे आंखमें लगानेसे समस्त नेत्ररोग नष्ट द्राक्षारसे च परिशुद्धमिति क्रमेण होते हैं ।
___ सौवीरकाजनमिदं तिमिरामयघ्नम् ॥
For Private And Personal Use Only