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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि - सांपकी कांचली, सरसों, नीमके पत्ते, माल- (८०८०) सर्षपादिधूपः कंगनी, बच, हसन, हींग, बकरीके बाल, काक ( ग. नि. । बालग्रहा. १२ ; वा. भ. । डासिंगी और काली मिर्च समान भाग ले कर उ. अ. ३) सबको एकत्र मिला कर कूट लें और फिर उसमें १ भाग शहद मिला लें। सर्षपानिम्बपत्रार्क मूलमश्वखुग यवाः। इसकी धूप देनेसे बच्चोंके समस्त ग्रह और भूर्जपत्रं घृतं धूपः सर्वग्रहनिवारणः ।। ज्वरोका नाश होता है। सरसे, नीमके पत्ते, आककी जड़, घोडेके खुर, भोजपत्र और जौ समान भाग ले कर एकत्र (८०७९) सर्पत्वगादिधूपः (२) कूट लें और उसमें १ भाग घी मिला लें । (ग. नि. । ज्वरा. १ ; वृ. नि. र.। विषमज्वरा.) इसकी धूप देनेसे बच्चोंके समस्त ग्रहविकार सर्पत्वचासर्षपहिङ्गनिम्ब नष्ट होते हैं। पत्राण्यमीषां समचूर्णधूपः। (८०८१) सहदेव्यादिधृपः विनिग्रहं राक्षसडाकिनीनां (वृ. नि. र. । विषम ज्वरा.) करोति रक्षां विषमज्वरे सः॥ सहदेवीवचाभद्रानाकुलीभिः प्रधूपनम् । सांपकी कांचली, सरसेा, हींग और नीमके प्रदेहोद्वर्तनं कुर्यादेभिर्वा ज्वरशान्तये ॥ पत्ते समान भाग ले कर बारीक कूट लें। सहदेवी, बच, हल्दी और रास्ना समान इसकी धूप देनेसे विषम ज्वरका रोगी ग्रहों भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसकी धूप देने अथवा और राक्षस डाकिनी आदिके उपद्रवोंसे सुरक्षित इसका लेप और उद्वर्तन करनेसे विषम ज्वर नष्ट रहता है। होता है। इति सकारादिधूपप्रकरणम् -2016 अथ सकारादिधूम्रप्रकरणम् (८०८२) सम्प्रसारणीगुटिका प्रोक्ता सिक्थेन वटिका बदरी बीज सन्निभा। (वै. र. । फिरंगरोगा.) धूम्रपानाय देथैका प्रातर्बब्बूलजाग्निना ॥ पग्माषं हिङ्गुलं चैव टङ्कणं दशमापकम् ।। गोघृताक्ता यवस्यैव रोटिकाऽलवणाऽशने । आकारकरभं सिक्थं दशमाषं पृथक्पृथक् ॥ ! फिराङ्गणे प्रदातव्याऽनिशं ताम्बूलबीटकम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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