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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ भारत-भैषज्य-रत्नाकर [ सकारादि धातकी पश्चपलिका रेणुका त्रिता कणा।। २५-२५ तोले ले कर सबको एकत्र कूट कर ३२ देवपुष्पं वचा कुष्ठं वाजिगन्धा विभीतकी । सेर पानीमें पकायें और ८ सेर रहने पर छान लें अमृतैला विडङ्गत्वक प्रत्येकं कर्षसम्मितम् । तदनन्तर उसमें १। सेर शहद, १२५ तोले खांड क्याथे तस्मिन् समस्तानि समाक्षिप्य प्रयत्नतः॥ तथा २५ तोले धायके फूल और ११-श तोला स्वर्णकुम्भे निदध्याद् भाजने मृण्मयेऽपि वा। रेणुका, निसोत, पीपल, लौंग, बच, कूठ, असगन्ध, स्वर्णपतनुपत्रश्च क्षिप्त्वास्मिन् कर्षसम्मितम् ॥ बहेड़ा, गिलोय, इलायची, बायबिडंग और दालचीनी; मासाज्जातरसं दृष्ट्वा हेमपत्रे लयं गते। इनका चूर्ण मिलाकर सबको स्वर्णकलश या मिट्टीके वाससा च परिस्राव्य स्थापयेद् घृतभाजने ।। पात्रमें भर कर उसमें । तोला सोनेके अत्यन्त सारस्वताभिधोऽरिष्टः एषोऽमृतसमः पुरा।। सूक्ष्म पत्र मिलाकर उसका मुख बन्द कर दें। शिष्याणामुपकारार्थ धन्वन्तरिविनिर्मितः॥ तदनन्तर १ मास पश्चात् खोलकर देखें यदि आयुर्वीर्य धृति मेघां बलकान्तिविवर्धयेत् ।। स्वर्णपत्र विलीन हो गये हों तो कपड़ेसे छानकर वाग्विशुद्धि करो हृयो रसायनवरः स्मृतः॥ बोतलों में भरकर सुरक्षित रक्खें । बालकानाश्च यूनाश्च वृद्धानाश्च हितः सदा । ___ यह अरिष्ट अमृतके समान गुणकारी है। नरनारीहितो नित्यं परमाजस्करो मतः॥ प्राचीन कालमें श्री धन्वन्तरि भगवान ने अपने वारयेत्स्वरकार्कश्यं तथा चास्पष्टभाषणम् । शिष्योंके उपकारार्थ इसकी रचना की थी। स्वरं परभृतस्येव जनयेत्सेवनात् सदा ॥ इसके सेवनसे आयु, वीर्य, धृति, मेधा, बल रजोदोषेण दुष्टानां योषितां शुक्रदोषिणाम् । और कान्ति की वृद्धि होती है और वाणी शुद्ध हो पुन्साश्चापि शुभकरः सर्वदोषहरो मतः ॥ जाती है । यह हृद्य, श्रेष्ठ रसायन और बालक, युवा अत्यध्ययनगीतादिक्षीणस्मृतिबला नराः ।। तथा वृद्ध स्त्री, पुरुषों के लिये हितकारी एवं लभन्ते चित्तसन्तोपं स्मृतिश्चास्य निषेवणात् ।। अत्यन्त ओजवर्द्धक है। इसके सेवनसे स्वरकी पयसा सह पाव्योऽरिष्टोऽयं शाणमानतः । कर्कशता और वाणीकी अस्पष्टता नष्ट होकर वाणी मासाभ्यां रोगहच्चायं शरदा सर्व सिद्धिदः ॥ कोकिल सदृश मधुर हो जाती है । यह आसव अकालमृत्योर्हरणे यदीच्छा रजोदोष और शुक्रदोषोंको नष्ट करता है। अत्यधिक नारोप्रियत्वं यदि वाञ्छिा स्यात् । अध्ययन और गीत आदिसे जिनकी स्मृति और वाकशुद्धिधैर्यस्मृतिलब्धिरिष्टा शक्ति क्षीण हो गई है उन्हें इसके सेवनसे लाभ निषेव्यतां तर्हामृतं भवद्भि ॥ पहुंचता है। चित्तको शान्ति प्राप्त होती और ब्राह्म मुहूर्तमें उखाड़ी हुई मूल, पत्र, शाखा स्मरणशक्ति बढ़ती है । इसे १ मास तक सेवन युक्त ब्राह्मी ११ सेर, पुष्य नक्षत्रमें उखाड़ी हुई करनेसे अकाल मृत्यु नष्ट हाती और मनुष्य शतावर, विदारीकन्द, हर्र, खस, अदरक और सौंफ कामिनीवल्लभ हो जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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