________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आसवारिष्टप्रकरणम् ] पश्चमो भागः
२७५ कल्क-सज्जीखार, सेंधा, दन्तीमूल, चीता- I १ सेर तेल में यह कल्क और ४ सेर गोमूत्र मूल, यूथिका ( जूही ) के फूल, नलकी जड़, | मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब मूत्र जल जाए नीलकी जड़ और अपामार्ग (चिरचिटे )के बीज; तो तेलको छान लें। इनका चूर्ण ११-१। तोला ले कर सबको एकत्र
यह तेल नाडीव्रणको नष्ट करता है। मिलाकर पानीके साथ पीस लें। १ सेर तेल में यह कल्क और ४ सेर गोमूत्र
(८०१८ ) स्वर्जिकाद्यं तैलम् (४) मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब मूत्र जल जाए
(व. से. । ज्वरा.) तो तेल को छान लें।
स्वर्जिकाकुष्ठमनिष्ठालाक्षामूमिहौषधैः। ____ यह तेल दुष्ट व्रण और कफज नाड़ीत्रण को सक्षीरैः साधितं तैलमभ्यङ्गाहाइशीतनुत् ।' नष्ट करता है।
__कल्क-सजी, कुठ, मजीठ, लाख, मूर्वा (८०१७) स्वजिकाद्यं तैलम् (३) | और सोंठ; इनका समान भाग मिलित चूर्ण १० । व. से. । नाडीव्रगा. : भा. प्र. म. खं. २ । । तोले लेकर सबको एकत्र मिला कर पानी के साथ नाडीव्रणा. )
पीस लें। स्वर्जिकासैन्धवं दन्ती नीलीमूलं फलं तथा । १ सेर तेलमें यह कहक और ४ सेर दूध मूत्रे चतुर्गुणे सिद्धं तैलं नाडीव्रणापहम् ॥ मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब दूध जल जाए कल्क-सज्जी, सेंधा, दन्तीमूल, नीलकी ता तलका ।
तो तेलको छान लें। जड़ और नीलके फल २-२ तोले ले कर सबको | इसकी मालिशसे घरके दाह और शीतका एकत्र मिलाकर पानी के साथ पीस लें। नाश होता है।
इति सकारादितैलप्रकरणम्
-*-40 -. अथ सकाराद्यासवारिष्टप्रकरणम् (८०१९) सारस्वतारिष्टः विदारिकाभयोशीराण्याकश्च तथा मिसिः । ( भै. र.)
पश्च पञ्च पलान्येषां जलद्रोणे पचेद् भिषक् ॥ समूलपत्रशाखाया ब्राह्मया ब्राह्ममुहूर्तके। पादावशेषे विस्राव्य रसं वस्त्रेण गालयेत् । गृहीत्वा विंशतिपलं पुष्ययोगे शतावरी ॥ । माक्षिकस्य दशपलं सितायाः पञ्चविंशतिः ॥
For Private And Personal Use Only