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पञ्चमौ भांगः
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अवलेहप्रकरणम् ]
का कल्क मिला कर पकावें और जब जलांश सूतोत्थविकृतिवापि सन्देहो नात्र कश्च न । शुष्क हो जाय तो घी को छान लें। मुक्तश्च सर्वरोगेभ्यो बलवर्णाग्निसंयुतः ॥ मानवः सिद्धकामोऽस्माच्छीघ्रं भवति निश्चितम् ।। ६ | सेर सारिवाको कूटकर ३२ सेर पानी में पकावें और ८ सेर शेष रहने पर छान लें। तदनन्तर उसमें गिलोय, शतावर, विदारीकन्द, जीवक, निसोत, मुण्डी, हर्र, बहेड़ा, आमला, छोटी इलायची और चोप चीनी; इनका २|| - २॥ तोले चूर्ण मिला. अनुपान - दूध । यदि रोग कफप्रधान हो कर पुनः मंदाग्नि पर पकायें और गाढ़ा हो जाने पर आगसे नीचे उतार कर ठंडा होने पर उसमें १ सेर शहद मिलाकर सुरक्षित रक्खें ।
तो मद्य ।
तत्पश्चात् उसमें २ सेर खांड तथा २०-२० तोले गेहूं का आटा (भुना हुवा ), पीपलका चूर्ण, बंसलोचनका चूर्ण, सिंघाड़े का चूर्ण और ४० तोले शहद मिलाकर मथनी से मथें । जब घी गाढ़ा हो जाय तो ५ - ५ तोलेके मोदक बनाकर उन्हें भोजपत्र में लपेटकर रख दें ।
इनके सेवन से शोष, कास, क्षतक्षीणता, श्रमजनित दुर्बलता तथा स्त्री सहवास और अधिक बोझ उठाने से उत्पन्न हुई क्षीणतो, रक्तनिष्ठीवन, ताप, पीनस, उरःक्षत, पार्श्वशूल, शिरशूल और हाथ पैका टूटना आदि विकार नष्ट होते हैं ।
( जीवनीय गण- - जीवक, ऋषभक, मेदा, मदामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, मापर्णी, मुलैठी और जीवन्ती । )
(७९३२) सारिवाद्यवलेहः (भै. र. । उपदंशा ).
सारिवाया: पलशतं जलद्रोणे विपाचयेत् । तस्मिन् पादावशेषे तु गुडूची शतमूलिका ॥ विदारी जीवनी त्रिमुण्डी च त्रिफला तथा । क्षुद्रेला चोपचीनी च प्रत्येकार्द्धपलं मतम् || सुपिष्टं निक्षिपेत्तत्र शीते मधु पलाष्टकम् । क्षीरानुपानयोगेन पित्रेसोलकसम्मितम् ॥ प्रमेहांश्चोपदेशांश्च मूत्रकृच्छ्रञ्च पीडकाः । नश्यन्ति त्वपरे रोगा रक्तदुष्ट्या भवन्ति ये ।
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मात्रा - १ तोला । अनुपान - दूध । इसके सेवन से प्रमेह, उपदंश, मूत्रकृच्छ्र, प्रमेह - पिडिका, रक्तदोष जनित अन्य रोग और पारद के समस्त विकार शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं । इससे समस्त ( रक्तदोषज ) रोग शीघ्र ही नष्ट हो कर बल वर्ण और अग्निकी वृद्धि होती हैं । इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।
नोट - इसमें सारिवा क्वाथको गाढ़ा करके प्रक्षेपयोंका चूर्ण मिलाना अच्छा है ।
(७९३३) सितादिलेह : (१) ( वा. भ. । चि. अ. १९ कुष्टा. ) सितातैलकृमिघ्नानि धान्यामलकपिप्पलीः । लिहानः सर्वकुष्ठानि जयत्यतिगुरूण्यपि ॥
मिश्री, तिलका तेल, बायबिडंगका चूर्ण और पीपलका चूर्ण १-१ भाग तथा आमले का चूर्ण २ भाग लेकर सबको एकत्र मिलावें ।
इसे सेवन करनेसे कष्टसाध्य कुठ भी नष्ट हो जाते हैं ।
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