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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ भारत-भैषज्य रत्नाकरः [सकारादि - - ज्वर, प्लीहा, श्लीपद, गुल्म, पाण्डु, कामला, शोथ, | ताप्यस्य पलत्रितयं वे लोहाएअन्त्रवृद्धि, शूल, अर्श, मेदवृद्धि, कफवृद्धि और । वणिकायाश्च ॥ आमसंचयको नष्ट करता है। त्रिफलकरअपल्लवखदिरगुडूचीवचाविहन्ती। (७९२५) स्वायम्भुवगुग्गुलु वटी मुस्ताविडङ्गरजनीचतुरङ्गुलवहिकुटजैश्च ।। पलिकैश्चूर्णमेतन्मूत्रेण गवां पिबेन्नरः प्रातः। (व. से. । वातव्या, ) | कुष्ठी घृतमधुमिश्रं जयत्यमृग्वासमचिरेण ॥ व्योपं सग्रन्थिकं पथ्यां चित्रकं जीरकद्वयम् । श्वित्राणि कुष्ठकोठौ विषगरगुल्मोदरममेहांश्च । अजमोदा यवानी च क्या चव्यमवरगुजम् ॥ उन्मादभगन्दरमपस्मृतिश्लीपदकृमिश्वासान् । लवणत्रितयं क्षारौ समभागानि कारयेत् ।। जयति वलीपलितानि च योगः यावन्त्येतानि चूर्णानि तावन्तं गुग्गुलं शुभम् ॥ स्वायम्भुवः प्रोक्तः । पादा सम्मित चात्र योजयेदम्लवेतसम् । बाबची २५ तोले, शुद्ध शिलाजीत २५ तोले, गुटिकैपा हिता वाते सामे सन्ध्यस्थिमज्जगे॥ शुद्ध गूगल ५० तोले, स्वर्णमाक्षिकभस्म १५ दृढी करोति भग्नश्च जठरानलदीपनी। तोले, लोह भस्म १० तोले और गोरख मुण्डीका पूजिता देवदेवेन कालपाशेन शम्भुना॥ | चूर्ण १० तोले एवं हर्र, बहेड़ा, आमला, करलके सेठ, मिर्च, पीपल, पीपलाभूल, हर्र, चीता, पत्ते, खैरसार, गिलोय, बच ( पाठान्तरके अनुसार सफेद और काला जीरा, अजमोद, अजवायन, | नीमकी छाल ), निसोत, दन्तीमूल, नागरमोथा, बच, चव्य, बाबची, सेंधानमक, बिड नमक, बायबिडंग, हल्दी, अमलतासकी छाल, चीता और संचल नमक, जवाखार और सज्जीखार १-१ भाग कुड़ेकी छाल; इनका चूर्ण ५-५ तोले ले कर तथा शुद्ध गूगल १८ भाग और अम्लवेतका चूर्ण सबको एकत्र मिलाकर भली भांति करें और ४॥ भाग ले कर सबको एकत्रमिलाकर (थोड़ा घी सबके एकजीव हो जाने पर सुरक्षित रक्खें। डाल कर) कटें और सबके एवजीव हो जाने पर ( मात्रा-१॥ माशा ।) (३-३ माशेकी) गोलियां बना लें। इसे धी और शहदके माथ चाटकर ऊपरसे इनके सेवनसे आमवात, सन्धिगत वायु तथा गोमूत्र पीना चाहिये। अस्थि और मज्जागत वायुका नाश एवं भग्नस्थान इसके सेवनसे वातरक्त, श्वित्रकुष्ठ, कोठ, दृढ़ होता और अग्नि दीप्त होती है। गरविष, गुल्म, प्रमेह, उन्माद, भगन्दर, अपस्मार, श्लीपद, कृमिरोग, श्वास और बलिपलितका नाश (७९२६) स्वायम्भुवो गुग्गुलुः (१) । होता है। ( ग. नि. । गुटिका. ४ ; भा. प्र. । कुष्ठा.) (नोट-गोरखमुण्डीसे आगेकी ओषधियां शशिरेपा पञ्चपलं तावगिरिजश्च अनुपान प्रतीत होती हैं, परन्तु पाठमें इसका गुग्गुलोर्दश च । स्पष्ट उल्लेख नहीं है।) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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