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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ सकारादि
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सप्तोत्तरावटी
तो काथको छान कर उसमें ५० तोले खांड और ( र. र. स.)
५ तोले बाबचीका चूर्ण, ५० तोले शुद्ध गूगल रसप्रकरणमें देखिये
एवं खैरसार, नीमकी छाल, मजीठ, असना वृक्षकी सम्प्रसारिणीगुटिका छाल, इन्द्रायणकी जड़, चीता, हल्दी, दारुहल्दी, (वै. र.)
देवदारु, हरे, भरगी और बच; इनका २॥-२॥ रसप्रकरणमें देखिये।
तोले चूर्ण मिला कर पुनः पकावें और गाढ़ा होने सर्वज्वरहरवटी
पर बेरके समान गोलियां बना लें। ( भा. प्र. । म. ख. २)
___ इनमेंसे १-१ गोली नित्य प्रति प्रातःकाल रसप्रकरणमें देखिये।
सेवन करनेसे उग्र कुष्ठ भी शीघ्र ही नष्ट हो सर्वज्वराङ्कुशवटी
जाता है। (भै. र. ; र. रा. मु.) रसप्रकरणमें देखिये ।
(७८९७) सर्वातिसारहारिणीगुटिका सर्वरोगान्तकवटी
(वै. र. । अतिसारा.) ( र. र. स. । उ. अ. १६ ; र. चं. । अजीर्णा.)
शृङ्गवेरमतिविषाविल्वमोचरसेन च । रसप्रकरणमें देखिये।
भुजागुडसंयुक्ता सर्वांतीसारनाशिनी ॥ (७८९६) सर्वाङ्गसुन्दरी गुटिका ( यो. र. । कुष्टा. ; वृ. यो. त. । त. १२० )
. सांठ असीस, बेलगिरी, मोचरस और पान; भल्लातकसहस्रैकं त्रिफलावारिणि क्षिपेत् ।
इनका चूर्ण १-१ भाग तथा गुड़ सबके बराबर द्रोणमात्रे पचेतावद्यावत्पादावशेषितम् ॥
ले कर सबको एकत्र मिला कर (३-३ माशेकी) शर्कराया दशपलान्येकं बाकुचिका पलम् ।
गोलियां बना लें। तथैवात्रैव देयानि पलानि दश गुग्गुलोः॥ ____ इनके सेवनसे समस्त प्रकारके अतिसार नष्ट खदिरारिष्टमञ्जिष्ठा बीजकं चेन्द्रवारुणी। होते हैं। चित्रकं द्वे हरिद्रे च देवदारु हरीतकी॥
(७८९८) सहकारगुटिका भागी वचेति सर्वेषां प्रत्येकं च पलार्धकम् ।। प्रक्षिप्य गुटिका कार्या नाम्ना सर्वाजसन्दरी। (च. द. 1 मुखरोगा. ५५ ; र. र. । मुखरोगा.) प्रत्यहं भक्षयेत्कुष्ठी त्वेतां बदरमात्रया ।
एलालतालवनिकाफलशीतकोषसर्वाण्येवोग्रकुष्ठानि शीघ्रमेव व्यपोहति ॥ कोळद्विकानि खदिरस्य कृते कषाये ।
१ हजार शुद्ध भिलावोंको त्रिफलाके १६ / तुल्यांशकानि दशभागमिते निधाय सेर काथमें पकावें । जब ४ सेर पानी रह जाय। मोद्भिन्नकैतकपुटे पुटवद्विपाच्य ॥
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