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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गुटिकाप्रकरणम् ] सञ्जीवनी वटी पञ्चमी भागः अथ सकारादिगुटिकाप्रकरणम् (ETT. ST.) प्रकरण में देखिये । www. kobatirth.org सन्धिवातारिगुटिका (र. चं. । शूला. ) प्रकरण में देखिये | (७८९४) सप्तलाद्यो मोदकः ( ग. नि. । गुटिका. ४ ) सप्तला पिप्पलीमूलं श्यामा दन्ती पृथक् पृथक् । समं दशपलैर्भागैर्दशमूली तुला समा ॥ हरीतक्यक्षधात्रीणां प्रस्थं प्रस्थं समावपेत् । जलद्रोणद्वये पक्वं पूतं पादावशेषितम् ॥ faei aai sini शङ्खिनीं मालतीमपि । त्रिवृव्योषयुतं ह्येतत्कृत्वा चूर्ण रसे क्षिपेत् ॥ टकान मात्रांस्तु वातश्लेष्मकृते जरे । शूले पक्वाशयस्थे च शुद्धयर्थे भक्षयेदिमान् ॥ सतला, पीपलामूल, काली निसोत, और दन्तीमूल ५०-५० तोले तथा दशमूल ६ । सेर और हर्र, बहेड़ा तथा आमला १-१ सेर ले कर सबको कूट कर ६४ सेर पानी में पकायें और १६ सेर शेष रहने पर छान लें। तदनन्तर उसमें बायविडंग, नागरमोथा, काली निसोत, शंखिनी, चमेलोके फूल, निसोत, सोंठ, मिर्च और पीपलका समान भाग मिलित ( २ सेर ) चूर्ण मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें और गाढ़ा हो जानेपर १ - १ | तो मोदक बना लें | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इनमें से १-१ मोदक (उष्ण जलके साथ) खानेसे विरेचन हो कर वातकफज ज्वर और Satara नष्ट होता है । सप्तशालिटी ( भा. प्र.; धन्व. ) प्रकरण में देखिये | (७८९५) सप्तसमावदी ( वा. भ. । चि. अ. १९ ) त्रिकटूत्तमा तिलारुष्कराज्य माक्षिक सितोपला विहिता । गुलिका रसायनं स्यात्कुष्ठ जिश्च वृष्या च सप्तसमा ॥ त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ) त्रिफला (हरे, बहेड़ा, आमला), तिल, शुद्ध भिलावा और मिश्री समान भाग ले कर चूर्ण बनावें और उसमें १-१ भाग घी तथा शहद मिला कर ( ६-६ माशेकी ) गुटिका बना ले I ये गोलियां रसायन, कुछ-नाशक और वृष्य हैं। सप्तामृतगुटी ( यो. चि. म. । अ. ३ प्रकरण में देखिये । २१९ सप्तामृतावदी ( र. र. स.) प्रकरण में देखिये | For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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