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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः २०३ - - - बातोदरं गुल्ममजीर्णभुक्तं माङ्गल्यपुष्पी च समान्यमूनि वातप्रकोपं ग्रहणीं च दुष्टाम् ।। सर्वैः समानाञ्च वचा विचूर्ण्य ॥ अशीसि दुष्टानि च पाण्डुरोगं ब्राह्मीरसेनाखिलमेव भाव्यं भगन्दरं चापि निहन्ति सद्यः॥ वारत्रयं शुष्कमिदं हि चूर्णम् । सामुद्र लवण, सञ्चल ( काला नमक ), सेंधा अक्षप्रमाणं मधुना घृतेन नमक, जवाखार, अजवायन, अजमोद, पीपल, लिह्यान्नरः सप्तदिनानि चूर्णम् ॥ चीतामूल, सेठ, हींग और बायबिडंग समान भाग सारस्वतमिदं चूर्ण ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । ले कर चूर्ण बनावें। हिताय सर्वलोकानां दुर्मेधानाम् विचेतसाम् । इसे घुतमें मिलाकर भोजनके समय प्रथम एतस्याभ्यासतः पुंसां बुद्धिर्मेधा धृतिः स्मृतिः। प्रासमें खानेसे वातोदर, गुल्म, अजीर्ण, वात प्र- सम्पत्तिः कविताशक्तिः प्रवर्द्धचोत्तरोत्तरम् ॥ कोप, ग्रहणीविकार, अर्श, पाण्डु और भगन्दरका कठ, असगन्ध, सेंधा नमक, अजमोद, सफेद नाश होता है। और काला जीरा, सोंठ मिर्च, पीपल, पाठा और ( मात्रा-२ माशे।) शंखपुष्पी १-१ भाग तथा बच सबके बराबर ले सामुद्राय चूर्ण (२) कर चूर्ण बनावें और ब्राह्मीके रसकी ३ भावना दे रस प्रकरणमें देखिये। (७८३६) सामुद्राद्ययोगः कर सुखा लें। (ग. नि. । राजयक्ष्मा. ९) मात्रा-११ तोला । (व्यवहारिक मात्रा ३ माशे।) सामुद्रकं च सय भानुदुग्वेन भावितम् । इसे घी और शहदमें मिला कर सेवन पाययेद्गव्यदुग्धेन मले मलविशुद्धये ॥ - करनेसे बुद्धि, मेधा, धृति, स्मृति और कविता सामुद्र लवणको आकके दूधकी भावना दे । शक्तिकी वृद्धि होती है। कर रक्खें । ___ इसे राजयक्ष्मामें मल शुद्धिके लिये गोदुग्धके (७८३८) सिताञ्जनादिचूर्णम् साथ खिलाना चाहिये । (वृ. मा. । अतिसारा.) (७८३७) सारस्वतचूर्णम् (वृहत) सिताअनकणालाजमधुर्फ नीलमुत्पलम् । ( भा. प्र. । म. ख. २ उन्मादा. ; व. से.। पित्तज्वरातिसारनं मलीदं मधुना सह ॥ उन्मादा. ; ग. नि. चूर्णा, ३ ; वृ. यो. सफेद सुरमा, पीपल, धानकी खोल, मुलैठी त. । ते. ८८ ; यो. चि म.। अ.२) और नीलोत्पल समान भाग ले कर चर्ण बनावें। कुष्ठाश्वगन्धे लवणाजमोदे - इसे शहदके साथ सेवन करनेसे पित्तथर द्वे जीरके त्रीणि कटूनि पाठा। और अतिसारका नाश होता है । १ कुछ ग्रन्थों में चित्रकके स्थानपर हरीतकी है।। (मात्रा-३ माशे।) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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