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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
( मात्रा - ३ - ४ माशे । दिनमें २-३ बार उष्णजलसे दें | )
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सोंठ और नीमके पत्तोंको पीसकर उसमें थोड़ा सेंधानमक मिलाकर जरा गर्म करलें और उसकी टिकिया बनाकर आंखपर बांधें ।
इससे आंखोंकी सूजन, खुजली और पीड़ा नष्ट होती है ।
(७७२९) शुण्ठयादिपुटपाकः (१) ( वै. मृ. । विषय २; शा. सं. । खं. २ अ. २) किश्चित् घृताक्तौषधचूर्णमेतदेरण्डपत्रावृतमग्निपक्वम् । सिता समं हन्ति तनोति चैतदामातिसारं जठरानलं च ॥ सेठको थोड़ा घी लगाकर अरण्डके पत्तों में लपेटकर गोला बनावें और उसपर मिट्टीका लेप करके पुटपाक करें । इसे मिश्री के साथ सेवन ( वृ. मा. । उदावर्ता; वं. से.; यो. र. । उदाकरनेसे आमातिसार नष्ट होता और अग्नि दीप्त होती है।
वर्ता.; ग. नि. । उदावर्ता. २४)
(७७३०) शुण्ठयादिपुटपाकः (२) (शा. सं. । खं. २ अ. २; भा. प्र. | म. खं. २) एरण्डरससम्पिष्टं पक्वमामञ्च नागरम् । आमातीसारशूलघ्नं पाचनं दीपनं परम् ||
. कच्ची अथवा पुटपाक विधि पकाई हुई सेठको अरण्डकी जड़के रसमें पीसकर सेवन करनेसे आमातिसार और शूलका नाश होता है । यह योग अत्यन्त दीपन और पाचन है । ( मात्रा - १-२ मारो | गुड़में मिलाकर उष्ण जलके साथ सेवन करें । )
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[ शकारादि
(७७३१) शेफालिका मूलयोगः ( ग. नि. । मुखरोगा. ५ ) शेफालिका मूलमुशन्ति कण्ठशालूकहन्तु प्रविचर्वितं सत् । रोगं निहन्यादुपजिह्विकाख्यं
नासान्तरप्रस्रुतरक्तधाराम् || शेफालिका ( हारसिहार) की जड़को चबाने से कण्ठशालूक, उपजिह्वा और नासासे होनेवाला रक्तस्राव नष्ट होता है ।
( नासासे रक्तस्राव होने की दशामें पीसकर रस निचोड़कर उसकी नस्य लेनी चाहिये । )
(७७३२) श्यामादिगणः
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श्यामा दन्ती द्रवन्तीत्व महाश्यामा स्नुही त्रिवृत् । सप्तला शङ्खिनी श्वेता राजवृक्षः सतिल्वकः ' ॥ कम्पिलकः करञ्जश्च हेमक्षीरीत्ययं गणः । सर्पिस्तैलरजःक्काथकल्केष्वन्यतमेन तु ॥ उदावर्तोदरानाहविषगुल्म विनाशनः ॥
काली निसोत, दन्ती, द्रवन्तीकी छाल, विधारा, सेंड (थूहर ), निसोत, सप्तला, शंखिनी, सफेद कोयल, अमलतास, तिल्वक, कमीला, करञ्ज और स्वर्णी ।
इनसे सिद्ध घृत, तेल या इनका चूर्ण, काथ और कल्क उदावर्त, उदर, आनाह, विष और है 1 गुल्मको नष्ट करता
१ "सबिल्वकः" इति पाठभेदः
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