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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७२ www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः (७७१७) शिग्रुपत्रादिपिण्डी ( यो. र. | नेत्ररोगा . ) शिग्रु पत्रकृता पिण्डी श्लेष्माभिष्यन्दहारिणी । सहजने के पत्तों को पीस कर टिकिया बना कर आंखपर बांधने से कफज नेत्राभिष्यन्द नष्ट होता है । (७७१८) शिरीषपुष्पादियोगः ( यो. त. । त. ७८; वृ. नि. र. । विषा. ) शिरीषपुष्पस्वर से सप्ताहं मरिचं सितम् । भावितं सर्पदष्टानां पाननस्याञ्जने हितम् ॥ सिरस के फूलों के रस में सात दिन तक सफेद मिचको भिगोए रेक्खें और फिर बारीक चूर्ण कर लें। यह चूर्ण पिलाने तथा इसकी नस्य देने और इसका अंजन लगाने से सर्पविष नष्ट हो जाता है । ( सफेद मिर्च = सजने के बीज ) (७७१९) शिरीषादिकवलग्रहः ( ग. नि. । विस्फोटका ४० ) शिरीपपूग मञ्जिष्ठादामलकयष्टिकैः सजातीपक्षौद्रैर्विस्फोटे कवलग्रहः ॥ सिरेसकी छाल, सुपारी, मजीठ, दारूहल्दी, आमला, मुलैठी और चमेली के पत्ते समान भाग लेकर कल्क बनावें । इसमें शहद मिला कर कवल धारण करने से विस्फोटक में लाभ पहुंचता है । (७७२०) शिशिरजलयोगः ( रा. मा. । रक्तपित्ता. १० ) पिबति शिशिरमम्भो यः प्रभाते निशायां तदनु च शयनीयाधिष्ठितो याति निद्राम् । [ शकारादि ध्रुवमतिविषमोऽपि क्षीयतेऽस्य त्रिरात्रादधिगतपरिपाकः पीनसः स्निग्धभोक्तुः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रातः काल ( कुछ रात्रि शेष रहने पर ) शीतल जल पान करके सो जानेसे तीन दिनमें कठिन और पक पीनस रोग भी अवश्य नष्ट हो है। पथ्य में स्निग्धाहार करना चाहिये । (७७२१) शीतजलकुम्भधारणम् ( रा. मा. । क्षुद्र रोगा. ३०) आरोपिते मूर्धनि शीतवारि कुम्भे शर्म गच्छति तत्क्षणेन । असृक्प्रवाह: मदरामयोत्थः स्त्रीणां नदीस्रोत इवावरोधात् ॥ शिर पर ठण्डे पानीसे भरा हुवा घड़ा रखसे स्त्रियोंके रक्त प्रदरका रक्तस्राव तुरन्त बन्द हो जाता है । (७७२२) शीतलजलधार (योगः ( भा. प्र. म. खं. २ । ज्वरा. ) उत्तानसुप्तस्य गभीरताम्र कांस्यादिपात्रे निहिते च नाभौ । शीताम्बुधारा बहुला पतन्ती निहन्ति दाहं त्वरितं ज्वरश्च ॥ वरमें दाह अधिक हो तो रोगीको पीठके बल लिटा कर उसकी नाभि पर ताम्र या कांसीका गहरा पात्र रख कर उसमें शीतल जलकी धारा छोड़नी चाहिये। इससे दाह शीघ्र ही शान्त हो जाती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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