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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] पञ्चमो भागः इसके सेवन कालमें रात्रिके समय पथ्य आ-| और उसे तुलसीके रसमें घोट कर गोला बनार्वे हार करना और सूरण, दूध, बैंगन, मत्स्य, मांस | तथा उसे चांगेरी (चूके) के कल्कके बीचमें रखकर तथा अम्ल शाकोंसे परहेज करना चाहिये । शरावसम्पुटमें बन्द करें और गजपुट में पकाकर (७७०२) शिवत्रारियोगः (२) ठंडा होने पर पीस लें। (र. चि. म. । स्त. २) - इसे ७ या १० चावलकी मात्रासे सेवन असनखदिरयू वितां सोमराजी करना आरम्भ करें और थोड़ी थोड़ी मात्रा बढ़ाते मधुघृतशिखिपथ्यालोहचूर्णैरुपेताम् । हुवे ६५ चावल भरकी मात्रा तक बढ़ाएं। शरदमवलिहाना कुष्ठजन्यान्विकारां ___ अनुपान-शहद और घी, या दही और स्त्यजति हितमिताशी दारुणान्दुःखरूपान् ॥ । घी अथवा नवनीत, या आमले और अदरकका रस बाबचीके चूर्णको असना वृक्ष और खैरकी | अथवा तेंदु और केलेका फल । छालके काथकी (बहुतसी) भावनाएं दे कर सुखा इसके सेवनसे श्वित्र कुष्ठ नष्ट होता है। लें और फिर उसमें शहद, घी, चित्रकमूलका चूर्ण, (७७०४) श्वित्रेभसिंहो रसः हर्रका चूर्ण और लोह भस्म (प्रत्येक उसके बरा (वृ. यो. त. । त. १२०) बर ) मिला कर खरल करके रखें। ___ इसे सेवन करने और हित तथा परिमित | शुदसतवलिकज्जलं शुभं बल्लयुग्ममवलिय सर्पिषा। भोजन करनेसे कुष्ठ जन्य दारुण विकार नष्ट वायसीशशिकलाविभीतक होते हैं। क्षौद्रमक्षमितमैक्षवान्वितम् ॥ (७७०३) शिवत्रारिरसः शीलयेदनु पयः पिबेदिमं (र. र. स. । उ. अ. २० र. च. । कुष्ठा.) चित्रदन्तिहरिरीरितो रसः । कासीसरसगन्धानि मर्दयेत्सुरसारसैः । समान भाग शुद्ध पारे और गंधककी कज्जली सम्पुटे पुटयेद्दत्वा शारीमधरोत्तराम् ॥ बनाकर ६ रत्ती मात्रानुसार घीके साथ मिला कर सर्वेमेतच्च सञ्चूर्ण्य तण्डुलान्दश सप्त वा। चाटें। इसके पश्चात् मकोय ( या काकजंग ), आरभ्य वर्धयेद्यावत्पश्चषष्टिक्रमेण हि बाबची और बहेड़े सम भाग मिश्रित चूर्णको अनुपानाय मध्वाज्यं दध्याज्यं नवनीतकम् । शहदके साथ मिलाकर ईखके रसमें घोलकर पीना पाच्याकरसैश्चैव सिन्दुकं कदलीफलम् ॥ चाहिये और उसके बाद दूध पीना चाहिये। इस श्वित्रारि सञ्जितो होष श्वित्रकुष्ठनिषूदनः ॥ | चूर्णकी मात्रा १। तोला है। शुद्ध कसीस, पारद और गन्धक समान भाग | इस विधिसे इसे सेवन करनेसे श्वित्र नष्ट ले कर तीनोंको एकत्र खरल करके कज्जली बनावें | होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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