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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रंसप्रकरणम् पञ्चमो भागः श्वासचिन्तामणिः (७६९७) श्वासहेमाद्रिरसः ( भै. र. । श्वासा) ( र. चं. । कासा. ; वृ. नि. र. । श्रासा.) प्र. सं. ७६९३ " वासकासचिन्तामणि आच्छादितशिलां ताम्रद्विगुणां बालुकाइये । रसः" देखिये । | पक्खा सञ्चूये गन्धेशौ दिनाधे तां पुन:पचेत॥ इवासभैरवो रसः श्वासहेमाद्रिनामाऽयं महाश्वासविनाशनः । वर्णद्धिकरो ह्येष सुवर्ण्यस्तु न संशयः॥ (र. च. ; भै. र. । हिक्काश्वा.) १ भाग शुद्ध ताम्र पत्र भौर २ भाग शुद्ध प्रयोग. सं. ४९६८ " भैरवरसः " | मनसिलका चूर्ण ले कर एक शरावमें नीचे मंसिदेखिये। लका आधा चूर्ण बिछा कर उस पर ताम्र पत्र (७६९६) श्वासहरवटका रखें और उस पर शेष मनसिल बिछा कर दूसरा (र. र. स. । उ. अ. १३ र. चं. । श्वासा.) | शराव ढककर सम्पुट बनावें और उस पर कपरपारदं गन्धकं चैव पलमेकं पृथक पृथक् । मिट्टी करके सुखा लें तथा (१ दिन) बालकापलत्रयं त्रिकटुक बङ्गमेकपलं क्षिपेत् ॥ यन्त्रमें पकावें और उसके स्वांगशीतल होने पर सर्वमेका संयोज्य दिनानि त्रीणि मर्दयेत् । औषधको निकालकर पीस लें । तदनन्तर उसमें गोमत्रेण तथा त्रीणि दिनानि परिमर्दयेत ॥ ( उसके बराबर ) समान भाग पारद गन्धककी अक्षप्रमाणवटकं छायाशुष्कं तु कारयेत् ।। कजली मिला कर ( घीकुमारके रसमें घोट कर नित्यमेकं तु पटक दिनानि त्रिंशदेव च ॥ टिकिया बना लें और फिर ) शरावसम्पुटमें बन्द श्वासकासज्वरहरमनिमान्द्याऽरुचिपणुत् ।। करके आधे दिन बालुका यन्त्रमें पकावें। तत्पशुद्ध पारद, गन्धक, सोंठ, मिर्च, पीपल और | | श्चात् उसके स्वांगशीतल होने पर पीस कर वंग भस्म ५-५ तोले ले कर प्रथम पारे गन्धककी सुरक्षित रक्खें। कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका (मात्रा-१ रत्ती।) चूर्ण मिला कर ३ दिन खरल करें । तदनन्तर इसके सेवनसे महा श्वास नष्ट होता और ३ दिन गोमूत्र में खरल करके १-१॥ तोलेके | वर्ण वृद्धि होती है। मोदक. बना लें और छायामें सुखा लें। (७६९८) श्वासान्तकरसः इनमेंसे १-१ मोदक ३० दिन तक सेवन (र. र. स. । उ. अ. १३; र. चं. । श्वासा.) करनेसे श्वास, कास, ज्वर, अग्निमांध और अरुचिको मृतः षोडस तत्समो दिनकरस्तस्यापभागो बलिः नाश होता है। | सिन्धुस्तस्य समः सुसूक्ष्ममादितः पपिप्पली( व्यवहारिक मात्रा-१-५ रत्ती।) । पर्णितः। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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