________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६४
भारत-भैषज्य रत्नाकरः [शकारादि दी बाब तो इसीका नाम "श्वास चिन्तामणि" | चूर्णको एकत्र मिलाकर १-१ मिर्च डालकर खरल हो जाता है।)
किया जाय तो गुण अधिक होता है । ) हवासकासारिरसः
(पाठान्तरके अनुसार-मिर्च ५ तोले
और त्रिकुटा ३।। तोले (प्रत्येक १। तोला) प्र. सं. ७६१३ " शिलातालो रसः ” देखिये।
होना चाहिये ।) :(७६९४) श्वासकुठाररसः (१) (७६९५) श्वासकुठाररसः (२) ( भा. प्र. म. ख. २ । श्वासा. , ज्वरा. ; वृ. यो. (र. चं. ; रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. ; भै. त.। त. ८० ; भै. र. ; रसे. सा. सं. ;
र. धन्व. । श्वासा.) धन्व. । हिक्कावा. ; वै. र. ; र. का. धे.; रण पारदं गन्धं विषं शिला कटुत्रिकम् ।
र. चं. ; वृ. नि. र. ; र. रा. सु.। निष्पिष्य वटिका कार्या वाणगुआममाणतः ॥ ____ श्वासा.; यो. त. । त. ३० उष्णोदकं पिबेच्चानु क्षुद्राक्वाथमथापि वा।
यो. चि. म. । अ. ७) कासं पञ्चविधं हन्ति श्वास श्लेष्मसमुद्भवम् ॥ रसो गन्धो विषशापि उडून मनःशिला। शिरोरोग निहन्त्या वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा ॥ एवानि कर्षमात्राणि मरिच चाट कर्षकम् ॥ | सुहागेकी खील, शुद्ध पारद, गन्धक, बछनाग, कटुभयं कर्षयुग्मं पृषगव विनिक्षिपेत् ।
| मनसिल, सोठ, मिर्च' और पीपल १-१ भाग
ले कर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और रसः वासकारोऽयं सर्वश्वासनिवारणः॥
| फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर - शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध वछनाग, पानीके साथ घोट कर ५-५ रत्तीकी गोलियां सुहागेकी खील और शुद्ध मनसिल ११-१। तोला, काली मिर्च १० तोले तथा सेठ, मिर्च और अनुपान-उष्ण जल या कटेलीका काथ । पीपल २॥-२| तोले ले कर प्रथम पारे गन्धककी
इनको सेवन करनेसे पांच प्रकारकी खांसी, कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका
कफज श्वास और शिरोरोग अत्यन्त शीघ्र नष्ट चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह खरल करें।
हो जाते हैं। ___ यह रस समस्त प्रकारके श्वासको नष्ट |
श्वासगजकेशरिरसः करता है।
स्वासकासकरिकेसरी रसः प्र. सं. ७६९२ (मात्रा-४-५ रत्ती ।)
देखिये। (नोट-मिर्चके अतिरिक्त सब चीजोंके १. पाठान्तरके अनुसार मिर्च २ भाग हैं।
ले
।
For Private And Personal Use Only