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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः १३९ - प्र. सं. २१७० ज्वरारि रसः (१) देखिये ।* गुञ्जकं तसतोयेन वातश्लेष्मज्वरापहः । (७६३७) शीताङ्कुशरस: रसः शीतारिनामायं शीतज्वरहरः परः । ( यो. र. । ज्वरा. ) . शुद् पारद, गन्धक और सुहागेकी खील तत्थं टङ्कणसूतखर्परविषं स्याद्गन्धकं तालकं १-१ भाग; शुद्ध जमालगोटा २ भाग तथा सर्व खल्लतले विमर्थ घटिकां तत्कारवल्लीरसैः। सेंधानमक, कालीमिर्च, इमलीकी छालकी भस्म और गुजैका गुटिका सुशर्करयुता सज्जीरकेणाथवा खांड १-१ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी एकद्वित्रिचतुर्थशीतहरणः शीताकुशो नामतः॥ कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधोंका ___ शुद्ध तूतिया, सुहागेको खील, शुद्ध पारद, चूर्ण मिलाकर सबको जम्बीरी नीबू के रसमें खरल खपरिया, शुद्ध बछनाग और शुद्ध गन्धक तथा करके १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें। हरताल समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी। इनमें से १-१ गोली उष्ण जलके साथ कजली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधे बनी देनेसे वातकफज ज्वर नष्ट होता है । मिलाकर सबको १ घड़ी करेलेके रसमें घोटकर (७६३९) शीतारिरसः (२) १-१ रत्तीकी गोलियां बनावें । इनमेंसे एक एक गोली खांड या जीरेके (वृ. यो. त. । त. ५९) चूर्णके साथ देनेसे एकाहिक आदि शीत ज्वर ! सितमल्लमनःशिलाहिफेन नष्ट होते हैं। रसकाम्भोधिजताप्यतुल्यभागैः। (७६३८) शीतारिरसः (१) सुषवीरसमर्दितै खिवारं ( रसे. चि. म. । अ. ९; भै. र. । ज्वरा. ; र. चं. भजशीतारिमिमं सितार्धगुञ्जम् ।। र. रा सु. ; रसे. सा. सं.; र. म. । अ. ६) सेवनाद्धरते तीब्र ज्वरं शीतं महोलणम् । पारदं गन्धकं टङ्ग शुद्ध चूर्ण समं समम् । मात्रात्रयेण निःशेष पथ्यं मुद्गौदनं स्मृतम् ॥ पारदाद्विगुणं देयं जैपालं तुषवर्जितम् ॥ शुद्ध सफेद संखिया, शुद्ध मनसिल, शुद्ध सैन्धवं मरिचं चिश्चात्वग्भस्म शर्करापि च । । अफीम, खपरिया, शंख भस्म और स्वर्णमाक्षिक प्रत्येक सूततुल्यं स्याज्जम्बीरैमैदेयेदिनम् ॥ भस्म समान भाग लेकर सबको एकत्र खरल करके * भा. प्र. में. खपरियाके स्थान पर ताम्र है। करलेके रसकी ३ भावना देकर आधी आधी रत्तीकी और र. सं. क. में तुत्थका अभाव है । र. का. धे. गोलियां बना लें। में एक दूसरा "शीत भंजीरस" भी है जिसमें । इनमें से १-१ गोली खांडके साथ देनेसे ताम्र, स्वर्णमाक्षिक और विष अधिक है शेष प्रयोग ३ मात्रामें तीन शीतञ्चर (मेलेरिया) अवश्य नष्ट इसी प्र. सं. २१७० के समान है। हो जाता है। १ शुल्बमिति पाठान्तरम् पथ्य-मूंगका यूष और भात । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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