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रसपकरणम्]
पचमो भाग:
(७६३१) शीतभञ्जीरसः (३) (७६३३) शीतभञ्जीरसः (५) (र. का. धे.। ज्वरा.)
(भै. र. । ज्वरा.) रङ्गौ तालं सोममलं हारिद्रं शुक्तिचूर्णकम् ।। तुत्थशम्बूकतालानां द्विगुणानां यथोचरम् । तुत्यं वल्लीरसपुटैः शीतभनी रसः परः॥ चूर्ण कुमारिकाद्रावैः पिष्ट्वा गोलं प्रकल्पयेत् ।।
बङ्ग भस्म, नागभस्म, शुद्ध हरताल, शद्ध शरावसम्पुट कृत्वा पचेद्गजपुटेन । संखिया, हारिद्र विष, सोपका चूर्ण और शुद्ध
* स्वाङ्गशीतं समुद्धृत्य चूर्णयित्वा निषापयेत् ॥ नीलाथोथा समान भाग ले कर सबको एकत्र
गुमाधै च सितायुक्तं खादेश सर्वज्वरोपहम् । खरल करके केवटो मोथेके काथमें घोटकर पुटमें
पथ्यं क्षीरोदनं देयं निहन्ति विषमज्वरम् ।। पकावें।
शुद्ध नीलाथोथा (तूतिया) १ भाग, क्षुद्र इसके सेवनसे शीतञ्चर नष्ट होता है।
शंख (धोंघे) २ भाग, और शुद्ध हरताल ४ भाग
ले कर सबको एकत्र खरल करें और फिर धृत( मात्रा-२-३ चावल भर ) ..
कुमारीके रसमें घोटकर गोला बना लें। इसे शराव. नोट-यह औषध विषैली है अतः योग्य चिकि- सम्पुट में बन्द करके गजपुटमें पकावें और फिर त्सकके परामर्शके बिना सेवन न करनी चाहिये।। स्वांग शीतल होने पर औषधको निकाल कर खरल (७६३२) शीतभञ्जीरसः (४)
करके रक्खें ।
मात्रा-आधी रत्ती। (र. का. धे.। चरा.)
इसे मिश्रीके साथ खानेसे समस्त विषमज्वर द्विपञ्चपञ्चपश्चैव रङ्गालनवसारकम् ।
___ नष्ट होते हैं। काकमाची कन्यकाद्भिर्मदितं च दिनं दिनम् ।। पथ्य-दूध भात | मूर्ययामैः शरावेण पकोयं तु रसः परः।
(७६३४) शीतभन्नीरसः (६) शीतभञ्जी द्विगुञ्जस्तु निहन्ति विषमज्वरान् ॥ (र. र. स. । उ. अ. १२ ; र. रा. सु. )
बङ्ग भस्म १० भाग तथा शुद्ध हरताल और सूततालशिलास्तुल्या मर्दयेन्मर्कटोरसे ।। नवसादर ५-५ भाग ले कर सबको एकत्र खरल ताम्रपात्रे विनिक्षिप्य तत्कल्क कज्जलीकृतम् ॥ करके मकोय और घृतकुमारीके रसमें १-१ दिन विपवेद्वालुकायन्त्रे यथोक्तविधिना ततः । खरल करके शरावसम्पुटमें बन्द करें और १२ दद्यान्मरिचचूर्णेन माषमात्रं भिषग्वरः ॥ पहर बालुकायन्त्रमें पकावें।
प्रपिवेदष्णतोयस्य चुलुकं शीतकज्वरे । मात्रा-२ रत्ती।
शीतभञ्जीरसः सोयं शीतज्वरनिवारणः॥ इसके सेवनसे विषमज्वर नष्ट होता है। १ कर्कटी रसे' इति पाठभेदः
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