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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] पञ्चमो भागः ९७ - - कासवासं क्षयाजीण ग्रहणीमुदराणि च ॥ मिला कर वारुणी यन्त्र बनावें तथा यथा विधि गुल्मारोचकमन्दानि प्लीहकच्छपिकाकृमीन् । अर्क खींच लें । अर्शीश्मरीमूत्रकृच्छमूत्राघातांच पाण्डुताम् ॥ मात्रा-१ यो २ रत्ती। आमवातं च कुष्ठानि पक्षाघातादिकागदान् ।। इसे पानमें लगाकर खाना चाहिये । अशीति संख्यान्वातोत्थालेष्मोत्यान्वि इसके सेवनसे कास, श्वास, क्षय, अजीर्ण, शति तथा ॥ ग्रहणी रोग, उदर रोग, गुल्म, अरुचि, अग्निमांद्य, शूलानि शोषान्यक्ष्माणमजीर्णानि निहन्ति च । प्लीहावृद्धि, कृमि रोग, अश्मरि, मूत्रकृच्छ, मूत्राघात, भुक्त्वा तु कण्ठपर्यन्तं रसं गुओन्मितं लिहेत् ॥ | पाण्डु, आमवात, कुष्ठ, पक्षाघातादि वातज रोग, भस्मीभवति तदभुक्तं पुनर्भोजनमिच्छति । । कफज रोग, शूल, शोष, और अजीर्ण आदि रोग यामार्थावावयत्येव शङ्खधात्वमवज्रकम् ॥ नष्ट होते हैं । मांसे दत्त्वाऽऽतपे स्थाप्यं मांस द्रवति तत्क्षणात्॥ कण्ठ पर्यन्त भोजन करके १ रत्ती यह रस इमलीका खार, अश्वत्थ* ( पीपल वृक्ष ) का खा लिया जाय तो वह सब पच जाता है और क्षार, स्नुही (सेहुंड) का क्षार, मुष्कक (मोखा वृक्ष) | पुनः भूख लगती है। का क्षार, अपामार्गका क्षार, आकका क्षार, सुहागा, ____ यह रस आधे पहरमें शंख, धातु और हीरेको जवाखार, सज्जीखार, पांचो नमक, होंग, शुद्ध गला देता है । हरताल, लोणार (सामुद्र नमक), नवसादर, सोमक्षार (सोमल ?), गोदन्तीहरताल, सोनामक्खी, यदि इसे मांस पर डाल कर धूपमें रख दिया शुद् गंधक, विड नमक, समुद्रफेन, सौराष्ट्री | जाय तो मांस पिघल जाता है । ( सोरठी माटी या फिटकी ), शोरा, शुद्ध बछनाग, (७५३४)शखद्रावः (४) शंखचूर्ण, शंखनाभि--चूर्ण, पत्थरका चूना, मन- (वैद्यामृत. । अलंका. २) सिल और कसीस; इनका चूर्ण समान भाग ले कर अर्कस्नुक्सातलाचिश्चापलाशकदलीतिलाः । सबको सात दिन तक अम्लवेतके रसकी धूपमें अपामार्गों मुष्ककश्च कपर्दः शङ्ख एव च ॥ भावना दें। यदि अम्लवेतका रस न मिले तो २१ । एतेषां भूतिमाक्षारः पारदः पटपञ्चकम् । दिन तक जम्बीरी नीबूके रसकी भावना दें ।। | पश्चक्षाराः समं सर्व विभागो गन्धकः स्मृतः।। तदनंतर उसे अत्यन्त शुष्क करके काचकी आतशी | भूरसा चैव सोरा च कासीसन्नवसादरः। शीशीमें भर दें और उसका मुख दूसरी शीशीसे । एतच्चतुष्टयं सर्वैरौषधैस्तुल्यभागिकम् ॥ .. ___ * पीपलवृक्षके स्थानमें पाठान्तरके अनुसार | सर्वेषां कजलिं कृत्वा निम्बुनीरेण मर्दयेत् । अमलतास है। प्रदधान्नलिकायन्त्रे वह्नि यामचतुष्टयम् ॥ १३ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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