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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
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( शराब पीने से उत्पन्न हुवा विकार नशा आदि ) होता है।
( दही १ पाव, तेल १ तोला, कपूर १ रत्ती । पहिले कपूरको तेलमें मिला लेना चाहिये ) (५२७६) मधुकादितैलम् (१) (च. द. । क्षुद्र रोगा. ५४; शा. सं. । म. खं. अ. ९. )
तैलं सयष्टीमधुकैः क्षीरे धात्रीफलैः श्रुतम् । नस्ये दत्तं जनयति केशान्श्मश्रूणि चाप्यथ ॥
१ सेर तिल के तेल में ४ सेर गायका दूध और ५-५ तोले मुलैठी तथा आमलेका चूर्ण मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब दूध और रस जल जाए तो तेलको छान लें 1 इसकी नस्य लेने से केश और दाढ़ीके बाल निकल आते हैं ।
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[मकारादि
१०४ तोले ( १ सेर २४ तोले ) तिलके तेल में ५ | सेर पानी और १-१ तोला मुलैठी, धायके फूल, लोध, मजीठ, कायफल, खरैटी, दारुहल्दी, हल्दी, पतन, हुर्ड, बहेड़ा, आमला और मदयन्तिका ( चमेली भेद ) का चूर्ण मिलाकर मन्दान पर पकायें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान लें ।
इसे लगानेसे उपदंश ( आतशक ) के घाव भर जाते हैं ।
(५२७९) मधुयष्टचादितैलम् ( र. र. । क्षुद्ररोगा . ) मधुयष्टीपलं तद्वत् द्वात्रिंशच्च पलानि वै । पादशेषो भवेत्tart काथांश तिलतैलकम् ॥ पुनर्मरिचमञ्जिष्ठे प्रत्येकं च पलार्द्धकम् । तैलशेषं पचेत्सर्वे लेपोऽयं मुखवर्णकृत् ॥
(५२७७) मधुकादितैलम् (२) ( व. से. । वातरक्ता. ) मधुकाद्विगुणम् तैलं तैलादाजं पयो भवेत् थामिबलं पेयं वातरक्तरुजापहम् ॥
१ सेर तेल में २०० तोले मुलैठीका चूर्ण और २. सेर बकरीका दूध ( तथा २ सेर पानी ) मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें। जब जलांश शुष्क हो जाय तो तेलको छान लें 1
इसे पीने से वातरक्त नष्ट हो जाता है । (५२७८) मधुकादितैलम् (३)
(ग. नि. । उपदंशा ८ )
गुडूच्यास्तु तुलाक्वार्थ जलद्रोणे विपाचयेत् । मधुकं धातुकी रोत्रं मञ्जिष्ठा कट्फलं बला || तेन पादावशेषेण तैलमस्थं विपाचयेत् ॥ दावहरिद्रापत्तङ्गत्रिफलामदयन्तिकाः । गर्भण तेन तत्तैलमभ्यङ्गाद् व्रणरोपणम् ॥
शतपुष्पामयान्योषरास्नाचन्दनमुस्तकम् । अजमोदा हरिद्रे द्वे कुष्ठधान्यकपद्मकम् ॥
५ तोले मुलैठी को ४ सेर पानी में पकावें । जब १ सेर पानी शेष रह जाय तो छान लें। तत्पश्चात २० तोले तिलके तेलमें यह काथ और २॥ -२॥ तोले काली मिरच तथा मजीठका चूर्ण मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें । जब काथ जल जाय तो तेलको छान लें।
इसकी मालिशसे मुखका रंग निखर आता है। (५२८०) मध्यमगुडूचीतैलम् (भै. र. । वातरक्ता.)
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