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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि
(५२७०) मञ्जिष्ठाद्यं तैलम् (१) । कल्क-मजीठ, पद्माक, कूठ, सफेद चन्दन, (ग. नि. । ग्रन्थ्या .)
गेरु, खरैटी, हल्दी, दारुहल्दी, फूलप्रियङ्गु, हाथीमञ्जिष्ठाविषयुक्तेन पुण्डरीकान्वितेन तु ।। दांतका चूर्ण, मुलैठी, बावची, देवदारु और पुण्डसैन्धवेन पचेत्तैलं गण्डमालाविनाशनम् ।।
रिया २॥-२॥ तोले लेकर सबको पोस लें। कल्क-मजीठ, बछनाग, कमल और सेंधा ।
२ सेर तेल में गायका दूध, असनाका काथ,
और भंगरेका रस या काथ समान भाग-मिश्रित नमक ५.५ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें।
८ सेर (प्रत्येक २ सेर ५३। तोले ) तथा उप.. क्याथ--उपरोक्त चारों ओषधियां २-२ सेर
रोक्त कल्क मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब लेकर सबको अधकुटा करके ३२ सेर पानीमें
जलांश शुष्क हो जाए तो तेलको छान लें। पकावें। जब ८ सेर पानी शेष रह जाए तो
यह तेल गिरते हुवे बालोंको रोकता और छान लें।
शिरशूल, मन्या ( गरदनकी नस ) का स्तम्भ, २ सेर सरसों के तेल में उपरोक्त कल्क तथा
हनुग्रह, दन्त शूल, कर्ण शूल, और आंखके दर्दको काथ मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब काथ
नष्ट करता है। जल जाए तो तेलको छान लें।
इसके व्यवहारसे केश स्निग्ध और धुंघराले ____ यह तेल गण्डमालाको नष्ट करता है।
होते तथा बढ़ते हैं । यह तैल पलित ( बालोंका (५२७१) मञ्जिष्ठाद्यं तैलम् (२)
सफेद हो जाना ) और इन्द्र लुप्त (गंज) रोगमें ( ग. नि. । तैला. २)
अत्युपयोगी और शिरो रोग नाशक है । इसकी मअिष्ठा पद्मकं कुष्ठं चन्दनं गैरिकं बला। नस्य लेनी और मालिश करनी चाहिए । हरिद्रे द्वे प्रियङ्गश्च नागं यष्टी सबाकुची॥ (५२७२) मनिष्ठाद्यं तेलम् (३) दारु प्रपौण्डरीकं च पिष्टवाऽर्धपलिकानि तु ।। (र. र. । क्षुद्र रोगा.) तैलप्रस्थं गवां क्षीरं दत्त्वा काथं तथासनात् ॥ चतुर्गुणं गवां क्षीरं क्षीराई तिलतैलकम् । चतुर्गुणं भृङ्गरसं शनैर्मेद्वनिना पचेत् । मनिष्ठा दि निशा लोध्र तुवरी तालकं शिला॥ अस्य तैलस्य पक्वस्य शृणु वीर्यमतः परम् ।। । लाक्षा गोरोचना कुष्ठं तथा च कुङ्कमद्वयम् । केशशाते शिरोदुःखे मन्यास्तम्भे हनुग्रहे। गैरिकं शिखीतुत्थश्च वटवृक्षस्य पत्रकम् ॥ दन्तकर्णाक्षिशूले च नस्येऽभ्यङ्गे च योजयेत् ।। नागकेशरकालीयपद्मवीजञ्च केशरम् । मुकुश्चिताग्रान् सुस्निग्धान् केशान् संजनये- पारदं गन्धकं पत्रं त्वचञ्च पतिकार्षिकम ॥
. दहून् । सर्व पाच्यं तैलशेष म्रक्षणान्मक्षिकापहम् । पलिते चेन्द्रलुप्ते च तैलमेतत्प्रशस्यते ॥ वदनञ्चन्दु तुल्यं स्यात्सप्तरात्रान्न संशयः ॥ मनिष्ठाद्यमिदं नाम्ना शिरोरोगनिवारणम् ॥ x इस स्थान पर पाठ भ्रष्ट प्रतीत होता है ।
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