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तैलपकरणम् ]
चतुर्थों भागः
अथ मकारादितैलप्रकरणम् । (५२६७) मञ्जिष्ठादितैलम् (१) पानी) मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें । जब दूध और ( यो. र. । कुष्ठा.; वृ. नि. र. । त्वग्दो. ) । | पानी जल जाय तो तेलको छान लें। मनिष्ठारुग्निशाचक्रमर्दारग्वधपल्लवैः।
इस तेलकी मालिशसे मुखकी नीलिका, तृणकस्वरसे सिद्धं तैलं कुष्ठहरं परम् ॥
पिडिका और मुहासे नष्ट हो जाते हैं तथा केवल ७
दिनकी मालिशसे ही बली पलितका नाश होकर मजीठ, कूठ, हल्दी, पंवाड़के पते और अम
मुख सुन्दर, पुष्ट और कंचनके समान प्रभावान हो लतासके पत्ते ४-४ तोले लेकर सबको एकत्र पीस
जाता है। लें। तत्पश्चात् २ सेर सरसोंके तेल में यह कल्क तथा ८ सेर गन्धतृगका स्वरस या क्वाथ मिला
___ (५२६९) मञ्जिष्ठादितैलम् (३) कर मन्दाग्निपर पकावें । जब पानी जल जाय तो (रा. मा. । मुखरो.) सेलको छान लें।
मनिष्ठामधुक सुचन्दनैः सलाः इस तेलकी मालिशसे कुष्ठ नष्ट होता है । काश्मीरप्रभवयुतैश्च कर्षमात्रैः। (५२६८) मञ्जिष्ठादितैलम् (२)
तैलस्य प्रमितपलाष्टकं विपकं
यत्क्षीरे द्विगुणमिते भवत्यजायाः॥ (च. द.; धन्व.; र. र.; यो. र.; वृ. मा.;
अभ्यङ्गादनुदिवसं विधीयमानं भै. र. । क्षुद्ररोगा.; वृ. यो. त. । त. १२७;
नारीणां वितरति सप्तभिर्दिनैस्तत् । यो. त. । त. ६८)
वक्ताब्जेष्वतनुकपोल भित्तिभासः मञ्जिष्ठा मधुकं लाक्षा मातुलुङ्ग सयष्टिकम् ।
प्रस्फूर्जचसुभगत्वमत्युदारम् ॥ कर्षप्रमाणैरेतैस्तु तैलस्य कुडवं तथा ॥ १ सेर तेलमें २ सेर बकरीका दूध, (२ सेर आज पयस्तद्विगुणं शनैर्मेद्वग्निना पचेत् ।। | पानी) और निम्न लिखित कल्क मिला कर मन्दाग्नि नीलिका पिडकाव्यङ्गानभ्यङ्गादेव नाशयेत् ॥ पर पकावे । जब दूध और पानी जल जाए तो मुखं प्रसन्नोपचितं वलीपलितवर्जितम् । | तेलको छान लें। सप्तरात्रप्रयोगेण भवेत्कनकसन्निभम् ।। कल्क-मजीठ, मुलैठी, सफेद चन्दन, लाख
कल्क-मजीठ, महुवे के फूल, लाख, बिजौ रे- | और केसर १३-१। तोला लेकर सबको एकत्र की छाल और मुलैठी १।-१। तोला लेकर सबको पीस लें । एकत्र पीस लें।
निरन्तर सात दिन तक इस तेलकी मालिशआधा सेर (४० तोले) तेलमें १ सेर से स्त्रियों के कपोल पुष्ट और अत्यन्त शोमायमान बकरीका दूध और उपरोक्त कल्क ( तथा १ सेर | हो जाते हैं।
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