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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir জুন ] .. चतुर्थों भागः । ८७ (५२५७) मालत्याचं घृतम् कायफलका चूर्ण १ भाग, नागरमोथेका चूर्ण ( भै. र. । मुख.) २ भाग, गिलोयका चूर्ण ३ भाग, और उड़दका मालत्या द्रोणपुष्प्याश्च निम्बबब्बोलयोस्तथा। चूर्ण ४ भाग लेकर सबको १० भाग घीमें घोट सहाचरस्य सर्जस्य स्वरसेन पृथक् पृथक् ॥ | कर सेवन करनेसे सुरापोनकी दुर्गन्ध तत्काल नष्ट कल्कैमलयजोशीररक्तचन्दनचम्पकैः। | हो जाती है। अश्वत्थवटनीलीभीरजनीदारुसैन्धवैः ॥ (५२५९) माषादिघृतम् दाा विश्वाहकुष्ठाभ्यां कणया च पचेद् घृतम् (व. से. वाजीकर.; नपु. मृता. । त. २) शनैस्ताम्रमये पात्रे कृतवङ्गविलेपने ॥ वृ. यो. त. । त. १४७) मालत्याद्यमिदं सर्पिर्गदान मुखसमुद्भवान् । माषाणामात्मगुप्तानां बीजानामाढकत्रयम् । निहन्यानात्र सन्देहो भास्करस्तिमिरं यथा । जीवकर्षभको मेदे वीरावृद्धी शतावरी ॥ द्रव पदार्थ-मालतीके पत्तोंका रस २ सेर, मधुकं चाश्वगन्धा च साधयेत्कुडवोन्मितम् । गूमाका रस २ सेर, नीमके पत्तोंका रस २ सेर, तमेवास्मिन्घृतपस्थे द्रव्यादशगुणं पयः ।। बबूलके पत्तोंका रस २ सेर, पियाबासेका रस २ विदारिणो दशप्रस्थं प्रस्थमिक्षुरकस्य च । सेर, शालका रस या क्वाथ २ सेर । दत्त्वा मृद्वग्निना साध्यं सिद्धं सपिर्निधापयेत् ॥ कल्क-सफेद चन्दन, खस, लाल चन्दन, चम्पाका फूल, पीपल वृक्षकी छाल, बड़की छाल, शर्करायास्तुगाक्षीर्याः क्षौद्रस्य च पृथक् पृथक् । भागांश्चतुष्पलांश्चात्र पिप्पल्याश्च द्वयं पलम् ॥ नीलकी जड़, हल्दी, देवदारु, सेंधा नमक, दारु बलपूर्वमतो लीड ततोऽन्नमुपयोजयेत् । हल्दी, सोंठ, कूठ और पीपल । सब समान भाग यदीच्छेदक्षयं शुक्रं शेफमश्चोत्तमं बलम् ।। मिश्रित २० तोले (प्रत्येक १०-११॥ तोला) लेकर उड़द १२ सेर, कौंचके बीज १२ सेर; सबको एकत्र पीस लें। जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकाली, वृद्धि, विधि-कलई किये हुए तांबेके पात्रमें २ शतावर, मुलैठी और असगन्ध प्रत्येक २०-२० सेर घृत और उपरोक्त समस्त द्रव पदार्थ तथा कल्क तोले लेकर सबको एकत्र कूट कर आठ गुने पानीमें डालकर मन्दाग्निपर पकावें । जब जलांश शुष्क हो पकावें । जब चौथा भाग पानी शेष रह जाय तो जाए ता घृतको छान लें। छान लें । तत्पश्चात् १ सेर घीमें यह क्वाथ, १० यह घृत समस्त मुखरोगोंको नष्ट करता है। सेर विदारीकन्दका रस, १ सेर ईखका रस और (५२५८) माषघृतम् २६१ सेर दूध मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें ।जब (वृ. नि. र. । पानात्यय.) १ दूध और उड़द तथा कौंचके बीजोंका परिमाण कट्फलमुस्तगुडूचीमाषैः क्रमवर्धितैश्च तत्सर्वैः। अधिक प्रतीत होता है। उड़द और कौंचके बीज ६-६ सेर तथा दूध 1. सेर लेना उचित है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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