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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८६ www.kobatirth.org त- भैषज्य रत्नाकरः भारत (५२५३) माणकघृतम् (भै. र. । शोथा. व. से.; वृ. मा. च. द.; र. र. । शोथा; भा. प्र. । म. खं. २ शोथा. ) माणकक्वाथककाभ्यां घृतपस्थं विपाचयेत् । एकजं द्वन्द्वजं शोथं त्रिदोषजमपोहति ॥ ४ सेर मानकन्दको ३२ सेर पानीमें पकायें जब ८ सेर पानी शेष रहे तो छान कर उसमें २ सेर घृत और २० तोले मानकन्दका कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें। जब काथ जल जाय तो घृत को छान लें। यह घृत एकदोषज, द्विढोषज और सन्निपात शोको नष्ट करता है । (५२५४) मातुलुङ्गमूलघृतम् ( ग. नि. । वन्ध्या ५ ) मातुलुङ्गशिफाकल्क सिद्धं गर्भमदं घृतम् । पिवेद्वन्ध्या प्रयत्न गर्भसञ्जननं परम् ॥ २ सेर घृतमें ८ सेर पानी और २० तोळे बिजौरेकी जड़की छालका चूर्ण मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय तो घृतको छान लें। इसे सेवन करने से वन्ध्या स्त्री को भी गर्भ रह जाता है । (५२५५) मातुलुङ्गादिघृतम् (१) ( ग. नि. । हिक्काश्वासा. ११ ) [ मकारादि २ सेर घीमें ८ सेर बिजौरे नीबू का रस तथा १०-१० तोले राल और सेंधा नमकका चूर्ण मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें । जब पानी जल जाय तो घृत को छान ले I Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसे पीने से हृदयको दुःख देने वाली हिचकी हो जाती है । (५२५६) मातुलुङ्गादिघृतम् (२) ( वृ. नि. र. । शूल ) घृताच्चतुर्गुणो देयो मातुलुङ्गरसो दधि । roserator roseraो दाडिमाम्भसा || विडङ्कं लवणं क्षारं पञ्चकोलयवानिभिः । पाठामूलक कल्केन सिद्धं शूले घृतं मतम् ।। हृत्पार्श्वलं वै श्वासं काहिकां तथैव च । वर्ध्यगुल्मप्रमेहान्वातव्याधींश्च नाशयेत् ॥ बिजौरे नीबू का रस ८ सेर, दही २ सेर, सूखी मूलीका क्वाथ २ सेर, खट्टे बेरोंका क्वाथ २ सेर और अनारका रस २ सेर लेकर २ सेर घृतमें ये समस्त चीजें तथा निम्नलिखित क मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें और जब जलांश शुष्क हो जाय तो घृतको छान ले 1 कलक - बायबिडंग, सेंधा नमक, जवाखार, पीपल, पीपलामूल, चव, चित्रक, सोंठ, अजवायन और पाठेकी जड़ २-२ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें । यह घृत हृदय और पसलीके शूल, श्वास, खांसी, हिचकी, बर्म, गुल्म, प्रमेह, अर्श और मातुलुङ्गरसे सर्जसैन्धवं घृतपाचितम् । हृद्दुःखदायिनी हिका तस्मिन् भुक्ते निवर्तते ॥ वातव्याधिको नष्ट करता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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