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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वातव्याधि] चतुर्थो भागः ८८५ ५३२० मूलकाद्यं तैलम् अत्यन्त प्रबल वातव्याधि ध्रसी शिरोवायु, कम्पादि ५३२१ , , गृध्रसी, कम्प,कटिस्त- ६८०३ विषगर्भ तैलम् सन्धिवात, त्रिकग्रह, म्भ, पंगुता कटिग्रह, ५९५६ रसोन , वातज रोगोंको शीघ्र ६८०६ ,, , समस्त वातज रोग नष्ट करता है। ६८०७ ,, , पक्षाघात, हनुस्तम्भ, ५९५९ राल पक्षाघात शिरो कम्पादि ५९६० रास्ना वातव्याधि, शिरोग्रह,६८१० विष्णु अनेक वातज रोग अपस्मार, । ६८११ विष्णु , मनुष्यों और पशुओंके ५९६१ रास्नादि , वातव्याधि, स्वास, समस्त वातज रोग, कास, मूत्रावरोध नपुंस्कता अविभेदक ५९६२ रास्नापूतिक, धनुर्वात, अन्तरायाम, (गर्भस्थापक) गृध्रसी, अक्षिस्तम्भ, ६८१२ , ऊर्ध्व वात, उंगलीग्रह, जिह्वास्तम्भ, पादहर्ष अंग सूखना, लड़खड़ा६२७९ लघुनारायण ,, वातव्याधि, ती चाल ६२८० लघु माष , बाहुकी पीड़ा ६८१७ वृषमूलादि , वात भंग ६२८१ ,, माषादि , वात व्याधि ६७८४ वाजिगंधादि , गृनसी नस्य-प्रकरणम् ६७८५ वातकुलान्तक ,, भंग, खंज, पंगुता आदि ५४५७ मरिचादि नस्यम अपतन्त्रककी बेहोशी ६७८६ वातारि , कुब्जता, आक्षेपक, पंगुता, सुप्तिवात, पक्षा रस-प्रकरणम् घात आदि ५५२५ मल्लपञ्चरत्नरसः समस्त वातज तथा ६७८७ वातारि तैलम् अंगोंका कम्पन, गृ वातकफज रोग, (महा) ध्रसी आदि ५५७२ महावह्नि रसः मूढ वात ६७८८ वायुच्छायासुरेन्द्र आक्षेपक, चित्तविकृति, ५५७५ ,, वातगजांकुश वातकफज रोग - तैलम् मर्मगत वायु, अपस्मार ५६०५ मार्तण्डेश्वर वातादि अष्ट महा रोग, ६८०१ विषगर्भ , पक्ष, जंधा, उरु और क्षय, कास संधिगत वायु, सींग- ५६३४ मृगाङ्क समस्त वातज रोग,हिक्का ग्रह, शून्यता ५६४७ मृत सञ्जीवनो वातव्याधि, उरुस्तम्भ, ६८०२ , , सन्धियोंका सूजन, ओमवात For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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