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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेदरोग] चतुर्थों भागः ८७५ ५६२० मूत्रकृच्छहरलौ- मूत्रकृच्छको अवश्य न- ६१०१ रससिन्दूरयोगः मूत्राघात हम ष्ट करता है। ६३८७ लोहचूर्णम् ३ मात्रामें मूत्रकृच्छूको ५६२२ मूत्रकृच्छ्रान्तकरसः , " " नष्ट करता है। ५६२२, " " " " " ६९८३ वरु गाद्यलौहम् मूत्राधात, दारुण मूत्र६०७० रस भस्म योगः साध्यासाध्य हर प्रकार कृच्छू, अश्मरि, ज्वर का मूत्रकृच्छ् ( बलवर्द्धक) (४२) मेदरोगाधिकारः गुटिका-प्रकरणम् लेप-प्रकरणम् ५१८४ मेथी मोदकः मेदमें अत्यन्त गुणकारी ५४२५ मोचरसादिलेपः शरीरकी दुर्गन्ध ६८५५ वासादि , शरीरकी , गुग्गुलु-प्रकरणम् ६६९४ व्योषादिगुग्गुलुः मेद, कफ, आमवात रस-प्रकरणम् ५६२६ मूर्ति रसः मेद, कफ, अग्निमांद्य अवलेह-प्रकरणम् ५६७२ मेदोहर रसः प्रवृद्ध मेद ६०७१ रसभस्मयोगः मेद जन्य स्थूलता ६२६३ लौहरसायनम् मेदनाशक, बलवर्द्धक ६९४२ वडवाग्नि रसः स्थूलताको शीघ्र नष्ट करता है। तैल-प्रकरणम् ६९४४ वडवाग्नि लौहम् स्थूलता, शोथ, शूल ५३०६ महासुगन्धतैलम् स्वेद, शरीरकी दुर्ग- ६९४९ वडवानलरसः एक मासमें मेदको न्ध आदि नष्ट कर देता है। ७०३८ विडङ्गादिलौहम स्थूलता आसवारिष्ट-प्रकरणम् ६२९९ लोहारिष्टः स्थूलता, विषमञ्चर, मिश्र-प्रकरणम् हृद्रोग | ५६९० मधु योगः अत्यन्त मेदनाशक For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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