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मेदरोग] चतुर्थों भागः
८७५ ५६२० मूत्रकृच्छहरलौ- मूत्रकृच्छको अवश्य न- ६१०१ रससिन्दूरयोगः मूत्राघात
हम ष्ट करता है। ६३८७ लोहचूर्णम् ३ मात्रामें मूत्रकृच्छूको ५६२२ मूत्रकृच्छ्रान्तकरसः , " "
नष्ट करता है। ५६२२, " " " " "
६९८३ वरु गाद्यलौहम् मूत्राधात, दारुण मूत्र६०७० रस भस्म योगः साध्यासाध्य हर प्रकार
कृच्छू, अश्मरि, ज्वर का मूत्रकृच्छ्
( बलवर्द्धक)
(४२) मेदरोगाधिकारः
गुटिका-प्रकरणम्
लेप-प्रकरणम् ५१८४ मेथी मोदकः मेदमें अत्यन्त गुणकारी ५४२५ मोचरसादिलेपः शरीरकी दुर्गन्ध
६८५५ वासादि , शरीरकी , गुग्गुलु-प्रकरणम् ६६९४ व्योषादिगुग्गुलुः मेद, कफ, आमवात
रस-प्रकरणम्
५६२६ मूर्ति रसः मेद, कफ, अग्निमांद्य अवलेह-प्रकरणम्
५६७२ मेदोहर रसः प्रवृद्ध मेद
६०७१ रसभस्मयोगः मेद जन्य स्थूलता ६२६३ लौहरसायनम् मेदनाशक, बलवर्द्धक
६९४२ वडवाग्नि रसः स्थूलताको शीघ्र नष्ट
करता है। तैल-प्रकरणम्
६९४४ वडवाग्नि लौहम् स्थूलता, शोथ, शूल ५३०६ महासुगन्धतैलम् स्वेद, शरीरकी दुर्ग- ६९४९ वडवानलरसः एक मासमें मेदको न्ध आदि
नष्ट कर देता है।
७०३८ विडङ्गादिलौहम स्थूलता आसवारिष्ट-प्रकरणम् ६२९९ लोहारिष्टः स्थूलता, विषमञ्चर,
मिश्र-प्रकरणम् हृद्रोग
| ५६९० मधु योगः अत्यन्त मेदनाशक
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