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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः अष्टादशानां कुष्ठानां दद्रूणां श्वित्रिणां तथा । कुष्ठनाडीषु मर्त्यानां दुष्टानां कीटिनां तथा ॥ असृावपरीता ये ये च त्यक्तभिषकूक्रियाः । विग्रहग्रस्तानां शीर्णाङ्गानां विशेषतः ॥ सर्वधातुगते कुष्ठे पतितभ्र शिरोग्रहे । घर्घराव्यक्तघोषाणां तथा सर्वाङ्गपीडिनाम् ॥ पानेऽभ्यङ्गे तथा नस्ये बस्तिकर्मणि नित्यशः । सप्तरात्रप्रयोगेण सर्वकुष्ठानि नाशयेत् ॥ द्विसप्ताह प्रयोगेण पूर्णचन्द्रनिभाननः । जातकेशनखश्मश्रुति षोडशवर्षवत् ॥ अनङ्गसदृशः साक्षात्सर्वामयविवज्र्जितः । एतद्घृतं महाश्रेष्ठं भार्गवेण विनिर्मितम् ॥ प्रजानाञ्च हितार्थाय सर्वव्याधिहरं शुभम् । महामार्करनामेदं वृतं सर्वापराजितम् ॥ सोंठ, महामेदा, नीमके पत्ते, सरसों, मनसिल, सिन्दूर, हल्दी, बाबची, हल्दी, दारूहल्दी, हरताल, हर्र, बहेड़ा, आमला और गन्धक ७ ॥ - ७॥ माशे लेकर सबको एकत्र पीस लें, फिर १ सेर घीमें २ सेर देवदारुका क्वाथ, ३ सेर दूध और ४ सेर गोमूत्र मिलाकर तांबे के पात्र में मन्दानिपर पकावें और जब चौथा भाग शेष रह जाय तो अग्निसे नीचे उतारलें । यह जलयुक्त घृत अग्निपर डालने पर भी शब्द नहीं करता (2) इसे पिलाने और मालिश करने से दाद, सफेद कुष्ठ, नाडी और कीटयुक्त रक्तस्रावी तथा वैद्योंसे त्यक्त कुष्ठ और विशेषतः शीर्णंग कुष्ठ कि जिसमें हाथ पैर इत्यादि भी गल गये हों, नष्ट हो है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ मकारादि यदि कुष्ठीकी भौं (भ्रू ) गिर गई हों, सिर जकड़ गया हो, शब्द में घरघराट होती हो और समस्त अंगोंमे पीड़ा हो तो उसे यह घृत पिलाने, इसकी मालिश करने तथा नस्य और वस्ति देने से आराम हो जाता है । इसके सेवन से प्रथम सप्ताह में समस्त कुष्ठ नष्ट हो जाते हैं और दूसरे सप्ताह के पश्चात् कुष्टी के बाल, नख, दाढी, इत्यादि निकल आते हैं; तथा वह समस्त रोग रहित, षोडश वर्षीय कुमार सदृश अत्यन्त रूपवान हो जाता है । (५२४६) महावज्रकघृतम् (१) ( ग. नि. । घृता. १ ) त्रिफला त्रिकटु द्विकण्टकारी कटुकाकुम्भनिकुम्भराजवृक्षैः । सवातिविषायिकैः सपाठैः पिचुभानव वज्रदुग्धमुष्ट्याः ॥ पिष्टैः सिद्धं सर्पिषः प्रस्थमेभिः क्रूरे कोष्ठे स्नेहनं रेचनं च । कुष्ठश्वित्र प्लीहवश्मगुल्मा न्हन्यात्कृच्छ्रांस्तन्महावज्रकारव्यम् ॥ हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल, छोटी और बड़ी कटेली, कुटकी, निसोत, दन्तीमूल अमलतास, बच, अतीस, चीतामूल और पाठा । प्रत्येकका चूर्ण १। - ११ तोला तथा थोहरका दूध ९० तोले लेकर सबको २ सेर घीमें मिला कर उसमें ८ सेर पानी डाल कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश शुष्क हो जाय तो घृतको छान लें 1 For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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